अदृश्य मादक सुगंध
की भाँति
प्रेम ढक लेता है
चैतन्यता,
मन की शिराओं से
उलझता प्रेम
आदि में
अपने होने के मर्म में
"सर्वस्व"
और सबसे अंत में
"कुछ भी नहीं"
होने का विराम है।
कदाचित्
सर्वस्व से विराम के
मध्य का तत्व
जीवन से निस्तार
का संपूर्ण शोध हो...
किंतु
प्रकृति के रहस्यों का
सूक्ष्म अन्वेषण,
"आत्मबोध"
विरक्ति का मार्ग है
गात्रधर सासांरिकता
त्याज्य करने से प्राप्त।
प्रेम असह्य दुःख है!
तो क्या "आत्मबोध"
व्रणमुक्त
संपूर्ण आनंद है?
गुत्थियों को
सुलझाने में
आत्ममंथन की
अनवरत यात्रा
जो प्रेम की
निश्छलता के
बलिदान पर
ज्ञान की
परिपक्वता है।
©श्वेता सिन्हा