Wednesday 17 June 2020

नियति


तुम्हारी 
प्राथमिकताओं की
सूची में
सर्वोच्च स्थान
पाने की कामना
सदा रही,
किंतु तुम्हारी
विकल्पों की सूची में भी
स्वयं को सबसे अंतिम पाया।

तुम्हारे लिये
विशेष मैं हो नहीं सकती
परंतु अपने अंश का
शेष भी सदैव
तुम्हारा मुँह जोहते 
उपेक्षित पाया।

एकटुक,
अपलक निहारो कभी,
तुम्हारी आँखोंं में
स्वयं को पिघलाने का स्वप्न
मर्यादाओं की
लक्ष्मणरेखा का यथार्थ
लाँघकर भी
तुम्हारी दृष्टि में
व्यर्थ ही रहा।

बहुत चाहा
तुम्हारी तृप्ति का
एक बूँद हो सकूँ
किंतु तुम्हारे अहं की 'धा' में
भाप बनी
अपने लिए
तुम्हारे मनोभावों
 की सत्यता
जानकर भी
 तुम्हारे ही
 आस-पास
 भटकना
 और मिट जाना
 नियति है मेरी।

©श्वेता सिन्हा

20 comments:

  1. Replies
    1. बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

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  2. बहुत सुंदर रचना... एक एक लाइन बहुत कुछ कहती हुई...

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3736
    में दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  5. हृदय तक पहुँचती पंक्तियाँ...

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  6. सच है की किसी के अहम् को पार करना आसान नहीं ... अहम् के आगे किसी को कुछ दिखाई कहाँ देता है ... मन के भाव ... दिल को छूते ...

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  7. विकल नारी मन के भावों का सुंदर शब्दांकन, प्रिय श्वेता | सम्पूर्ण समर्पित मन -तन को मनचाहा अवलंबन ना मिले तो ऐसे भाव उपजना स्वाभाविक है दूसरे शब्दों में इसे नियति मानकर संतोष करना पड़ता है|

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  8. बहुत चाहा
    तुम्हारी तृप्ति का
    एक बूँद हो सकूँ
    किंतु तुम्हारे अहं की 'धा' में
    भाप बनी.. वाह बेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी।

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  9. सुंदर भावाभिव्यक्ति श्वेता👌

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  10. "तुम्हारे लिये
    विशेष मैं हो नहीं सकती
    परंतु अपने अंश का
    शेष भी सदैव
    तुम्हारा मुँह जोहते
    उपेक्षित पाया।"

    बहुत बढ़िया। बेहतरीन...

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  11. विकल्पों की सूची में भी
    स्वयं को सबसे अंतिम पाया।
    वाह सुन्दर शब्द समायोजन

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  12. तुम्हारे मनोभावों
    की सत्यता
    जानकर भी
    तुम्हारे ही
    आस-पास
    भटकना
    और मिट जाना
    नियति है मेरी।
    प्रेम दूसरा रास्ता ढ़ूंढने ही कहाँ देता है....फिर परवाने सा जल कर भष्म ही क्यों न हो जाय नियति मानकर तिल तिल जलता है इस विश्वास के साथ कि शायद कभी तो....
    बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।

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  13. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 17 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  14. काश मनचाहा हो पाता
    हो भी जाता है कभी-कभी
    हर मुराद पूरी हो दुआ है मेरी

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  15. अति सुंदर सृजन

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  16. अग्रिम क्षमाप्रार्थी ...
    "एकटुक,
    अपलक निहारो कभी," .. में एकटुक = एकटक .. Typoerror हो गया है .. शायद ...
    (या शायद इस शब्द का अर्थ नहीं आता हो मुझ अल्पज्ञानी को)

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  17. बहुत अच्छी रचना है...।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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