Thursday, 28 January 2021

चश्मे... मतिभ्रम


उड़ती गर्द में
दृश्यों को साफ देखने की 
चाहत में
चढ़ाये चश्मों से
अपवर्तित होकर
बनने वाले परिदृश्य
अब समझ में नहीं आते 
तस्वीरें धुंधली हो चली है
निकट दृष्टि में आकृतियों की
भावों की वीभत्सता से
पलकें घबराहट से
स्वतः मूँद जाती हैं,
दूर दृष्टि में
विभिन्न रंग के
सारे चेहरे एक से... 
परिस्थितिनुरूप
अलग-अलग समय पर 
अलग-अलग
कोणों से
खींची तस्वीरों को
जोड़कर प्रस्तुत की गयी
कहानियों से
उत्पन्न मतिभ्रम 
पीड़ा का 
कारण बन जाता है।

सोचती हूँ
भ्रमित लेंस से बने
चश्मे उतार फेंकना ही
बेहतर हैं,
धुंध भरे दृश्यों 
से अनभिज्ञ,
तस्वीरों के रंग में उलझे बिना,
ध्वनि,गंध,अनुभूति के आधार पर
साधारण आँखों से दृष्टिगोचर
दुनिया महसूसना 
 ज्यादा सुखद एहसास हो 
शायद...।
---------////---------
#श्वेता सिन्हा
२८ जनवरी २०२१

 

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. भ्रमित लेंस से बने चश्मे उतार फेंकना ही बेहतर हैं श्वेता जी । मतिभ्रम वास्तव में ही पीड़ा का कारण बन जाता है । धूप में निकलो, घटाओं में नहाकर देखो; ज़िंदगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो । सार्थक अभिव्यक्ति के लिए अभिनंदन आपका ।

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  3. साधारण आंखों से...शायद नहीं यकीनन सुखद अहसास है ।

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  4. दृष्टिकोण बदलते ही दृष्टि बदल जाती है | मतिभ्रम होना भी नजरिये के असंतुलन का परिचायक है | चिंतनपरक और संवेदनशील रचना प्रिय श्वेता | सस्नेह हार्दिक शुभकामनाएं|

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  5. बहुत ही सारगर्भित विषय का बारीक चिंतन..सुन्दर कृति..श्वेता जी..

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  6. सच कहा श्वेता ये दिशा और मनोदशा दोनों को भ्रमित करते लैंस चढ़े हैं आँखों पर ,पर इन्हें उतार फैंकना भी कितना मुश्किल है काश हमारे पास भी सूर जैसी दृष्टि होती।
    शानदार सृजन ने मन मोह लिया ।
    सस्नेह साधुवाद।

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  7. बहुत बहुत सुदर सराहनीय

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  8. अच्छी कविता |आपको बधाई और हार्दिक शुभकामनायें

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  9. अवास्तविक जगत से वास्तविक जगत की ओर ले जाती आपकी कविता बहुत अच्छी और सुंदर है..धन्यवाद आपका इतना सुंदर सृजन करने के लिए..

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  10. Very beautiful composition. waah

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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