Sunday, 5 September 2021

बदले दुनिया(शिक्षक)

शिक्षक मेरे लिए मात्र एक वंदनीय शब्द नहीं है, न ही मेरे पूजनीय शिक्षकों की मधुर स्मृतियाँ भर ही।
मैंने स्वयं शिक्षक के दायित्व को जीया है।
मेरी माँ सरकारी शिक्षिका रही हैं,मुझसे छोटी मेरी दोनों बहनें भी वर्तमान में सरकारी शिक्षिका हैं। 
उनके शिक्षक बनने के सपनों से यथार्थ तक की मनोव्यथा को शब्द देने का यह छोटा सा प्रयास है।


संगीत नहीं मैं सदा साज बनाऊँगी। 
टूटी कश्तियों से ज़हाज़ बनाऊँगी।।
ककहरे में ओज, नवचेतना भर दूँ,
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।
 
पढ़ाकर भविष्य संवारूँगी
शिक्षक बनकर बदल दूँगी
सरकारी विद्यालय की छवि,
खूब सिखलाऊँगी बच्चों को
बनाऊँगी एक-एक को रवि।
कच्चे स्वप्नों में भरकर पक्के रंग
सुंदर कल और आज बनाऊँगी 
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।

सोचा न था सुघढ़ गृहणी की भाँति
करना होगा चावल-ईंधन का हिसाब, 
कक्षा जाने के पूर्व बरतनों की गिनती
भरनी होगी पक्के बिल की किताब।
बही-ख़ातों की पहेली में उलझी 
कागज़ों में आसमान की कल्पना कर,
कैसे मैं नन्हें परिंदों को बाज़ बनाऊँगी?
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी 

कितने एसी,एसटी, बीसी 
कितने जनरल  हुए दाखिल
आधार बने कितनों के और
खाते में क्रेडिट हुए कितने फ़ाजिल,
अनगिनत कॉलमों को भरने में
महारथी शिक्षक द्रोण से हुए अर्जुन 
सामान्य ज्ञान के रिक्त तरकश, अब कैसे
लक्ष्य जो भेद सके तीरंदाज़ बनाऊँगी ?  
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए 
मीटिंग सारी बहुत जरूरी है
भांति-भांति के रजिस्टर भरना
कर्तव्य नहीं हमारी मजबूरी है
पढ़ाने के बदले अभियान पूरा करो
विभागीय फरमान मूल्यों से ऊपर है
सूख रही गीली माटी  कैसे अब
गढ़ साँचों में राष्ट्र का ताज़ बनाऊँगी?   
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।

चोंचलों के चक्रव्यूह में घिरकर
चाहकर भी गुरू नहीं बन पाती हूँ
शिक्षण की चाह दबाकर मन में
अपने फर्ज़ ईमानदारी से निभाती हूँ 
फिर भी आशाओं के परिणाम पत्र में 
ऋणात्मक अंक लिए अनुत्तीर्ण हो जाती हूँ
उम्मीद की पोटली लिए सफ़र में हूँ
एकदिन सपनों के अल्फ़ाज़ बनाऊँगी
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।

#श्वेता सिन्हा
५ सितंबर २०२१


16 comments:

  1. Replies
    1. जी प्रणाम सर,
      आप भी मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
      आपका स्नेह मिलता रहे।

      सादर।

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  2. फिर भी आशाओं के परिणाम पत्र में
    ऋणात्मक अंक लिए अनुत्तीर्ण हो जाती हूँ
    उम्मीद की पोटली लिए सफ़र में हूँ
    एकदिन सपनों के अल्फ़ाज़ बनाऊँगी
    बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।...यथार्थपूर्ण चित्रण,बहुत सुंदर भाव प्रस्तुत करती रचना।

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  3. सबको नमन, सुन्दर पंक्तियाँ।

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  4. वाह बहुत ही सशक्त लिखा ...

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०७ -०९-२०२१) को
    'गौरय्या का गाँव'(चर्चा अंक- ४१८०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. पढ़ाने के बदले अभियान पूरा करो
    विभागीय फरमान मूल्यों से ऊपर है
    सूख रही गीली माटी कैसे अब
    गढ़ साँचों में राष्ट्र का ताज़ बनाऊँगी?
    बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।
    एकदम सटीक ...शिक्षकों की इस विवशता से परिचित हूँ मैं भी..सरकारी स्कूलों के शिक्षक तो विभागीय फरमान ही पूरे करते करते थक जाते हैं साथ ही चुनावी दौर में अलग ड्यूटी और अब तो कई जगह कोरोना के वक्त भी ड्यूटी करनी पड़ी...फिर पढ़ाने का वक्त ही कितना बचता है।
    बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।

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  7. एक दबी हुई चाह है शिक्षक बन आज भी आने वाले कर्णधारों को सँवारने की सुंदर समाजोपयोगी उत्थान के भाव। साथ ही शिक्षकों की वेदना पर व्यथित मन।
    सार्थक सृजन।

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  8. हर सरकारी विद्यालय के बुलेटिन बोर्ड पर इस कथा-व्यथा का अंकन होना चाहिए । नीति निर्माताओं को भी भेंट में दिया जाना चाहिए । तब भी शायद ....

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  9. वाह! बहुत ही शानदार रचना और बहुत ही अच्छे भाव!

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  10. पूरे परिवार को नमन है आपके ... सभी शिक्षक हैं तो आदरणीय हैं ...
    बहुत ही लाजवाब रचना आपको सार्थक कर रही है ...

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  11. उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे

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  12. प्रशंसनीय सृजन। आकांक्षाओं और मजबूरियों में तालमेल बनाते हुए सभी शिक्षक अपने दायित्व को निभाते हैं। सभी शिक्षकों को सादर शुभकामनायें और बधाईयाँ। सुन्दर और सार्थक सृजन के लिए आपको ढेरों शुभकामनायें।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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