अवतारों की प्रतीक्षा में
स्व पर विश्वास न कम हो
तेरी कर्मठता की ज्योति
सूर्यांश,तारों के सम हो।
सतीत्व की रक्षा के लिए
चमत्कारों की कथा रहने दो,
धारण करो कृपाण,कटार
आँसुओं को व्यर्थ न बहने दो।
व्याभिचारियों पर प्रहार प्रचंड
उष्मा ज्वालामुखी सम हो।
अवतारों की प्रतीक्षा में
स्व पर विश्वास न कम हो।
प्रार्थनाओं में,ध्यानस्थ होकर
बस टेर लगाना पर्याप्त नहीं,
भावनाओं की जड़ों को सींचो
मानवीय मूल्य सर्वव्याप्त नहीं।
अपने जीवन के कुरूक्षेत्र में
तुम ही अर्जुन के सम हो।
अवतारों की प्रतीक्षा में
स्व पर विश्वास न कम हो।
करो कृष्ण को महसूस
सद्कर्म कल्कि का अंश है,
प्रेम,दया,सत्य में अमिट
हर युग में कृष्ण का वंश है।
संवेदनाओं को जीवित रखो,
मनुष्यता का मर्म कृष्ण सम हो।
अवतारों की प्रतीक्षा में
स्व पर विश्वास न कम हो।
#श्वेता सिन्हा
३० अगस्त २०२१
बिलकुल ठीक कहा श्वेता जी आपने। किसी भी अवतार अथवा नायक की प्रतीक्षा में न रहकर मानव को स्वयं पर ही विश्वास करते हुए उचित कर्म करने चाहिए जो उसके अपने एवं समष्टि के हित में हों। प्रशंसनीय कविता में अभिव्यक्त उत्तम विचारों हेतु अभिनंदन आपका।
ReplyDeleteस्व पर विश्वास नितांत आवश्यक है | उत्कृष्ट सृजन !!
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है ... उस माधव पर विह्वास होते हुवे भी स्व पर विश्वास होना जरूरी है ... वो भी उन्ही के पास आता है जो खुद जागते हैं, अणि रक्षा को तत्पर होते हैं ... गहरी, भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteअप्प कृष्ण भव: । सबों को अपना युद्ध स्वयं ही लड़ना पड़ता है और अवतार की प्रतीक्षा आत्म उर्जा ही तो है । अति सुन्दर भाव सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसामयिक उद्गार। प्रबल संप्रेषण।
ReplyDeleteअवतारों का आह्वान का अर्थ ये कथापि नहीं कि स्वयं हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाएँ । ये आह्वान भी स्वयं में ऊर्जा संचार का माध्यम भर है ।।कहते हैं न कि ईश्वर भी उनकी ही मदद करते हैं जो स्वयं अपनी करते हैं । तुमने अक्सर देखा होगा कि कभी कोई भारी चीज़ को उठाने के लिए जब लोग ज़ोर लगाते हैं तो बोलते हैं ज़ोर लगा कर हईशा ..... और एक साथ बोलने से शायद जोश ज्यादा आता है और वो भारी वस्तु उठा ली जाती है । बस कृष्ण को पुकारना भी कुछ ऐसा ही है । जन जन के अंदर कृष्ण जन्म हो । एक बार तो आओ कृष्ण सबके मन में । ये हमारी आस्था है , मान्यताएँ हैं जो इस तरह ईश्वर को पुकार उठती हैं ।
ReplyDeleteयदि कृष्ण को पाना है तो कर्म का त्याग तो हो ही नहीं सकता ।
तुमने अपने भावों को सटीक और सार्थक शब्द दिए हैं । स्वयं को याचक नहीं बनाना है , खुद के कर्म से कृष्ण को पाना है ।
सस्नेह
सच में उस स्व का अनुसंधान की 'कृष्ण' को पाने का सच्चा उद्यम है। उत्तिष्ठ!
ReplyDeleteबहुत सामयिक और सार्थक रचना।
ओज भरा आह्वान!
ReplyDeleteस्वयं में एक कृष्ण अवतरित होतो कोई बात हो ।
बहुत सुंदर सकारात्मक उर्जा का आह्वान करती सुंदर रचना।
स्व पर विश्वास से बढ़ कर कुछ भी नहीं..., हृदयस्पर्शी भावासिक्त सृजन ।
ReplyDeleteअपने जीवन के कुरूक्षेत्र में
ReplyDeleteतुम ही अर्जुन के सम हो।
अवतारों की प्रतीक्षा में
स्व पर विश्वास न कम हो।...वाह, सुंदर,सकारात्मक रचना।