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Saturday, 6 May 2017

कुछ पल सुकून के


      गहमा-गहमी ,भागम भाग अचानक से थम गयी जैसे....घड़ी की सूईयों पर टिकी भोर की भागदौड़....सबको हड़बड़ी होती है...अपने गंतव्य पर समय पर पहुँचने की...सबके जाने के बाद...घर की चुप्पी को करीने  सहेजती....
भोर के इस पल का रोज बेसब्री से इंतज़ार होता है मुझे....
चाय चढ़ाकर रसोई की खिड़की के बाहर नजरें चली जाती है हमेशा....जहाँ से दिखाई पड़ता है विशाल पीपल का पेड़...जब से इस घर आई हूँ फुरसत के पल उस पेड़ को ताकने में बीत जाता है....नन्हें नन्हें चिड़ियों की भरमार है उसपर....सुबह से ही.तरह तरह की आवाजें निकालते...किलकते,फुदकते एक दूसरे से जाने किस भाषा में बतियाते....मधुर गीत गाते मानो गायन प्रतियोगिता होती है हर सुबह... आजकल तो कोयल भोर के प्रथम प्रहर से ही रियाज़ शुरू कर देती है....इस डाली से उस डाली, हरे पत्तों से आँखमिचौली खेलते.....नाचते आपस में खेलते पक्षी बहुत सुकून देते है मन को.....खिड़की के बाहर निकले मार्बल पर जरा सा चावल ,रोटी के कुछ महीन टुकड़े रख देती हूँ जब मैंना और गौरेया रसोई की खिड़की पर आकर स्नेह से देखते है एक एक दाना खाते सारे जहान की बातें कहते है मुझसे फिर इक असीम आनन्द की लहर से मन में दौड़ने लगती है....जाने क्या क्या कहती है फुदक फुदक कर....मीठी बातों को सुनती उनके क्रिया कलाप को निहारने का यह सुख अद्भुत है।सबकुछ भूलकर उनके साथ बिताये ये पल एक अलग सुख दे जाते है......पुरवाई की हल्की थाप जैसे तन छूकर मन की सारी थकान मिटा देती है।
चाय के एक एक घूँट के साथ दुनिया से झमेले से परे अपने मौन का यह पल पूरे दिन की ताज़गी दे जाता है।


    #श्वेता🍁


7 a.m
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मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...