आरक्षण के नाम पर
घनघोर मचा है क्लेश
अधिकारों के दावानल में
पल-पल सुलगता देश
लालच विशेषाधिकार का
निज स्वार्थ में भ्रमित हो
क्या मिल जायेगा सोचो?
दूजे नीड़ के तिनकों से,
चुनकर के स्वप्न अवशेष
जाति,धर्म के दीमक ने ही
प्रतिभाओं को चाट लिया
नेताओं ने कुर्सी की खातिर
अगड़े पिछड़े को बाँट लिया
टुकड़े हो देश,यही दुर्गति शेष
आरक्षण की वेदी पर चढ़ा
अनगिनत मासूमों की भेंट
नर,नराधम अमानुष बन
पुरुषार्थ हीन करते आखेट
फिर,कैसे तुम हुये विशेष?
अधिकारों का ढोल पीटते
कितने कर्तव्य निर्वहन किये?
बस जलाकर,दहशत फैला
अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किये
देशभक्ति का यह अनूठा वेश
बाजुओं में दम है तो जाओ
कर्मों की अग्नि जलाओ
क्यों बनो याचक कहो न?
बन के सूरज जगमगाओ
सार्थक उदाहरण,तुम बनो संदेश
-श्वेता सिन्हा