पूछती हूँ
काल के चक्रों को छू
है जन्म क्यों और
जन्म का उद्देश्य क्या?
हूँ खिलौना ईश का
तन का बदलता रुप मैं
आना-जाना पल ठिकाना
किरदार का संदेश क्या?
बनाकर के तुम मिटाते
सृष्टि का महारास रचते
शून्य,जड़-चेतन तुम्हीं से
जीवों में बचता शेष क्या?
जन्म से मरण तक
काँपती लौ श्वास रह-रह
मोह की परतों में उलझा
जीवन का असली वेश क्या?
क्यों बता न जग का फेरा
मायावी कुछ दिन का डेरा
चक्रव्यूह रचना के मालिक
है सृष्टि का उद्देश्य क्या?
©श्वेता सिन्हा
३ मार्च २०१९
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