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Saturday, 20 January 2018

बसंत


भाँति-भाँति के फूल खिले हैं रंग-बिरंगी लगी फुलवारी।
लाल,गुलाबी,हरी-बसंती महकी बगिया गुल रतनारी।।

स्वर्ण मुकुट सुरभित वन उपवन रंगों की फूटे पिचकारी।
ओढ़़ के मुख पर पीली चुनरी इतराये सरसों की क्यारी।।

आम्र बौर महुआ की गंध से कोयलिया कूहके मतवारी।
मधुरस पीकर मधुकर झूमे मधुस्वर गुनगुन राग मनहारी।।

रश्मिपुंजों के मृदु चुंबन पर शरमायी कली पलक उघारी।
सरस सहज मनमुदित करे बाल-विहंगों की  किलकारी।।

ऋतुओं जैसे जीवन पथ पर सुख-दुख की है साझेदारी।
भूल के पतझड़ बांह पसारो अब बसंत की है तैय्यारी।।


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...