क्षणिकायें
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जब भी तुम्हारे एहसास
पर लिखती हूँ कविता
धूप की जीभ से
टपके बूँदभर रस से
बनने लगता है इंद्रधनुष।
सरसराती हवा में
तुम्हारे पसीने की गंध
जब घुलती है
बुलबुल की चोंच में
दबी फूलों की महक से
मौसम हो जाता है गुलनार।
तुम्हारे स्वर के
आरोह-अवरोह पर
लिखे प्रेम-पत्र
तुम्हारी रुनझुनी बातें
हवा की कमर में खोंसी
पवनघंटियों-सी
गुदगुदाती है
शुष्क मन के
महीन रोमछिद्रों को।
#श्वेता सिन्हा
"विह्वल हृदय धारा" साझा काव्य संकलन पुस्तक में
प्रकाशित।
"विह्वल हृदय धारा" साझा काव्य संकलन पुस्तक में
प्रकाशित।