हर बर्ष मन की बुराइयों को मिटाकर
श्री राम के आदर्शों पर
चलने का संकल्प करते है
पुतले के संग रावण की,
हृदय की बुराइयों को जलाकर
रावण को मिटाने का प्रण करते है
स्वयं को बस भरमाते है।
स्वयं के अंतर्मन में झाँक कर
कभी देख पाए तो देखिएगा
राम का चरित्र की छाया से दूर है
रावण से भी निचले स्तर पर
आज मानव का मूल्य पाते है।
हम राक्षस और दुष्ट
रावण के चरित्र का
शतांश भी स्वयं में पाते हैं??
रावण के अहंकार पर हँसते हम
अपनी तिनके सी उपलब्धि पर
गर्व से उन्मत हो जाते है,
रावण की वासना को
उसके विनाश का कारण कहते हुए
उसके संयम को भूल जाते है
माता सीता के तपबल में
रावण की मर्यादा को अनदेखा कर
हम स्वयं के मन के असुर को
जीवित कर जाते है
मनुष्य कितने चरित्रवान है आज
हर दूसरे दिन गली, मुहल्लों में
अखबार की सुर्खियों में छपे नज़र आते है
अपनी ओछी चरित्र का
प्रमाण हम स्वयं ही दे जाते है
रावण अपने दस चेहरे बाहर ही रखता था
आज हम अपना एक चेहरा ही
अनगिनत में मुखौटों की तह में
छुपाते है
अपने अंदर छुपे
रावण के दस चेहरों में
एक चेहरा ही काश कि हम मिटा पाये
चलिए न आज हम
बुराई प्रतीक रूपी पुतले के साथ
अपने अंतर्मन की एक बुराई जलाकर
रावण दहन का असली मतलब समझे।
#श्वेता🍁