चेतना के बंद कपाट के पार,
मनमुताबिक न मिल पाने की
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षिप्त,
भरभरायी उम्मीद घूरती है।
अप्राप्य इच्छाओं के कोलाज
आँसुओं में भीगकर गलते है,
जीवन की धार भोथड़ होकर,
संघर्ष का गला रेतती है।
प्रतिकूल जीवन के ढर्रे से विद्रोह
संवाद का कंठ अवरुद्ध करके,
भावनाओं की सुनामी का ज्वार
अनुभूतियों का सौंदर्य लीलती है।
मन के अंतर्द्वंद्व का विष पीकर
मुस्कान में घोंटकर श्वास वेदना,
टूटी देह, फूटे प्रारब्ध से लड़कर
जीवन का मंत्र बुदबुदाती पीड़ा।
विजय और उम्मीद पताका लिए
स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते,
साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।
©श्वेता सिन्हा
१४ जून २०२०