किसी सिक्के की तरह
सच के भी दो पहलू
होते हैं...!
आँखों देखी सच का
अनदेखा भाग
समझ के अनुसार
सच होता है।
सच जानने की
उत्कंठा में
राह की भूलभूलैया में
भटकते हुये थककर
खो जाते हैं अक़्सर
अन्वेषण
सच की
भ्रामक परछाईंयों में।
सच ठहरा होता है,
अविचल,अभेद्य
मूक-बधिर सच
निर्विकार,निश्चेष्ट
देखता-सुनता रहता है
विरूदावली
आह्वान और प्रलाप।
सच के स्थिर,सौम्य
दैदीप्यमान प्रकाश के
पीछे का सच
उजागर करने के लिए
किये गये यत्न में
अस्थिर किरणों के
प्रतिबिंब में
खंडित सच
बरगलाता है।
सच का
एक से दूसरे तक
पहुँचने के मध्य
दूरी चाहे शून्य भी हो तो
परिवर्तित हो जाता है
वास्तविक स्वरूप।
सच शिला की भाँति
दृढ़प्रतिज्ञ,अडिग
मौन दर्शक होता है
तथाकथित
सच के वाहक
करते हैं गतिमान सच
अपने मनमुताबिक
सच के प्रवक्ता
सच के नाम पर
जितना मोहक
मायाजाल बुन पाते हैं
सच के सच्चे योद्धा
सर्वश्रेष्ठ सेनानी का
तमगा पाते हैं।
©श्वेता सिन्हा
१६अप्रैल२०२०
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