सृष्टि के प्रारंभ से हीब्रह्मांड के कणों मेंघुली हुईनश्वर-अनश्वर कणों की संरचना के अनसुलझेगूढ़ रहस्यों की पहेलियों की अनदेखी करज्ञान-विज्ञान,तर्कों के हवाले सेमनुष्य सीख गयापरिवर्तित करनाकर्म एवं मानसिकता सुविधानुसारआवश्यकता एवंपरिस्थितियों काराग अलापकर।
भोर की तरहधूप का अंश होकर,बादल या आकाशकी तरह,चंदा-तारों की तरहरात और चाँदनी कीगवाही परजीवन का स्पंदनमहसूसनाकण-कण मेंदृश्य-अदृश्य रूप मेंसंलिप्त, खोकर अस्तित्व स्व कानिरंतर कर्मण्य, निर्लिप्त होनासृष्टि के रेशों में बंधीप्रकृति की तरह ...प्रकृति का सूक्ष्म अंशहै मानवफिर भी...सीख क्यों न पायाप्रकृति की तरहनिःस्वार्थ,निष्कलुष एवंनिष्काम होना?
#श्वेता
सृष्टि के प्रारंभ से ही
ब्रह्मांड के कणों में
घुली हुई
नश्वर-अनश्वर
कणों की संरचना के
अनसुलझे
गूढ़ रहस्यों की
पहेलियों की
अनदेखी कर
ज्ञान-विज्ञान,
तर्कों के हवाले से
मनुष्य सीख गया
परिवर्तित करना
कर्म एवं मानसिकता
सुविधानुसार
आवश्यकता एवं
परिस्थितियों का
राग अलापकर।
भोर की तरह
धूप का अंश होकर,
बादल या आकाश
की तरह,
चंदा-तारों की तरह
रात और चाँदनी की
गवाही पर
जीवन का स्पंदन
महसूसना
कण-कण में
दृश्य-अदृश्य रूप में
संलिप्त,
खोकर अस्तित्व
स्व का
निरंतर कर्मण्य,
निर्लिप्त होना
सृष्टि के रेशों में बंधी
प्रकृति की तरह ...
प्रकृति का सूक्ष्म अंश
है मानव
फिर भी...
सीख क्यों न पाया
प्रकृति की तरह
निःस्वार्थ,
निष्कलुष एवं
निष्काम होना?
#श्वेता