Showing posts with label सीख क्यों न पाया? छंदमुक्त कविता सामाजिक. Show all posts
Showing posts with label सीख क्यों न पाया? छंदमुक्त कविता सामाजिक. Show all posts

Saturday, 28 November 2020

सीख क्यों न पाया?

सृष्टि के प्रारंभ से ही
ब्रह्मांड के कणों में
घुली हुई
नश्वर-अनश्वर 
कणों की संरचना के 
अनसुलझे
गूढ़ रहस्यों की
 पहेलियों की 
 अनदेखी कर
ज्ञान-विज्ञान,
तर्कों के हवाले से
मनुष्य सीख गया
परिवर्तित करना
कर्म एवं मानसिकता 
सुविधानुसार
आवश्यकता एवं
परिस्थितियों का
राग अलापकर।

भोर की तरह
धूप का अंश होकर,
बादल या आकाश
की तरह,
चंदा-तारों की तरह
रात और चाँदनी की
गवाही पर
जीवन का स्पंदन
महसूसना
कण-कण में
दृश्य-अदृश्य रूप में
संलिप्त, 
खोकर अस्तित्व 
स्व का
निरंतर कर्मण्य,
 निर्लिप्त होना
सृष्टि के रेशों में बंधी
प्रकृति की तरह ...
प्रकृति का सूक्ष्म अंश
है मानव
फिर भी...
सीख क्यों न पाया
प्रकृति की तरह
निःस्वार्थ,
निष्कलुष एवं
निष्काम होना?

#श्वेता


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...