सूर्य की किरणें
निचोड़ने पर
उसके अर्क से
गढ़ी आकृतियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
चाँदनी की स्वप्निल
डोरियों से
उकेरे रेखाचित्र
उकेरे रेखाचित्र
स्निग्ध,धवल
बुनावट,यथार्थ की
मोहक कलाकृतियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
पर्वतों को
गलाकर बाजुओं में
धारते, वज्र के
परकोटे,
विषबुझी टहनियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
लक्ष्मण रेखा,
सीमाओं के
जीवित ज्वालामुखी,
शांत राख में दबी
चिनगारियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
हुंकार मृत्यु की
जयघोष विजय,
शत्रुओं की हर
आहट पर
तुमुलनाद करती
दुदुंभियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
माँ-बाबू के
कुम्हलाते नेत्रों की
चमकती रोशनी,
सिंदूरी साँझ में
प्रतीक्षित विरहणियों की
फालसाई स्मृतियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
सभ्यताओं के
बर्बर छत्तों में
जीवन पराग
हँस-हँसकर त्याजते,
मातृभूमि के लाड़ले सपूत,
मानवता की बाड़ की
दुर्भेद्य कमाचियाँ,
सैनिक मेरे देश के।
©श्वेता सिन्हा
२० जून २०२०