चित्र:साभार गूगल
----
----
अधिकारों का ढोल पीटते
अमन शहर का,चैन लूटते,
तोड़-फोड़,हंगामा और नारा
हमें चाहिए आज़ादी...!
बहेलिये के फेंके जाल बनते
शिकारियों के आसान हथियार,
स्वचालित सीढियाँ हम कुर्सी की
हमें चाहिए आज़ादी...!
दिन सत्याग्रह के बीत गये
धरना-घेराव क्या जीत गये?
जलाकर बस और रेल संपदा
हमें चाहिए आज़ादी...!
मौन मार्च किस काम के
बाँधते काली पट्टी नाम के,
बोतल बम,पत्थर से कहते
हमें चाहिए आज़ादी...!
त्वरित परिणाम बातों का हल
प्रयुक्त करो युक्ति छल-बल,
छ्द्म हितैषी ज्ञान बाँटते
हमें चाहिए आज़ादी...!
परिसर,मैदानों,चौराहों पर
नुक्कड़,गलियों,राहों पर,
इसको मारे,उसको लूटे
हमें चाहिए आज़ादी...!
हिंदू क्या मुसलिम भाई
भेड़-चाल सब कूदे खाई,
गोदी मीडिया शंख फूँकती
हमें चाहिए आज़ादी...!
वोट बैंक की हम कठपुतली
कटी पतंग की हैं हम सुतली,
धूर्त सूत्रधार के दृष्टिकोण से
हमें चाहिए आज़ादी...!
हिंसक भड़काऊ भाषण से
अधकचरे बौद्धिक राशन से
देश का भविष्य निर्माण करेंगे
हमें चाहिए आज़ादी...।
मातृभूमि का छलनी सीना
बँटता मन अब कैसे सीना?
द्वेष दिलों के भीड़ हो चीखे
हमें चाहिए आज़ादी...!
दर्द गुलामी का झेलते काश!
बंदियों, बंधुओं के दंश संत्रास
५७ से ४७ महसूसते,फिर कहते
हमें चाहिए आज़ादी....!
#श्वेता