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Saturday 10 June 2017

जब भी

जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है
किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है

हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है
जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है

जिस  रात को चाँद से तेरी बातें की हमने
सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है

जिसने भर दिया दामन को बेरंग फूलों से
उनके एक दर्द पर हम क्यों तड़पने लगते है

दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती
तेरा जिक्र होते ही दरो दीवार महकने लगते है

मिटा दे हर ख्याल जेहन की किताब से लेकिन
इबारत पे उनका नाम देखकर सिसकने लगते है

        #श्वेता🍁



Thursday 8 June 2017

अजनबी ही रहे

हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद

चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद

है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद

चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद

ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद

#श्वेता🍁

Tuesday 30 May 2017

किस तरह भुलाऊँ उनको

ऐ दिल बता किस तरह भुलाऊँ उनको
फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको

काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के
तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊँ उनको

दूर तलक हर सिम्त परछाईयाँ नुमाया है
कैसे मैं बात करूँ कहाँ से लाऊँ उनको

जबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको

दिल के खज़ाने की पूँजी है चाहत उनकी
किस तरह खो दूँ मैं कैसे गवाऊँ उनको

       #श्वेता🍁

Wednesday 10 May 2017

ख्याल आपके

ख़्वाहिश जैसे ही ख़्याल आपके।
आँखें पूछे लाखों सवाल आपके।।

अब तक खुशबू से महक रहे है,
फूल बन गये है रूमाल आपके।

सुरुर बन चढ़ गये जेहन के जीने,
काश कि न उतरे जमाल आपके।

कर गये घायल लफ़्ज़ों से छु्कर,
मन को भा रहे है कमाल आपके।

दिल की ज़िद है धड़कना छोड़ दे,
न हो जिस पल में ख़्याल आपके।


#श्वेता🍁

Wednesday 3 May 2017

सज़ा

दस्तूर  ज़माने की तोड़ने की सज़ा मिलती है
बेहद चाहने मे, तड़पने की उम्रभर दुआ मिलती है

ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते
जला जाती है चाँदनी, जख्मों को न दवा मिलती है

किस यकीं से थामें रहे कोई यकीं की डोर बता
ख़्वाब टूटकर चुभ जाए ,तो ज़िंदगी लापता मिलती है

जिनका आशियां बिखरा हो उनका हाल क्या जानो
अश्क़ों के तिनके से बने ,मकां मे फिर जगह मिलती है

क्यों लौटे उस राह जिसकी परछाईयाँ भी अपनी नही
चंद ख़ुशियों की चाहत में, तन्हाइयाँ बेपनाह मिलती है

        #श्वेता🍁



Thursday 27 April 2017

तुम

ज़िदगी के शोर में खामोश सी तन्हाई तुम
चिलचिलाती धूप में मस्ती भरी पुरवाई तुम

भोर की पहली याद मेरी दुपहरी की प्यास
स्वप्निल शाम की नशीली अंगड़ाई तुम

अनसुना सा प्रेमगीत जेहन में बजती रागिनी
लफ्ज़ महके से तेरे मदभरी शहनाई तुम

हो रहा कुछ तो असर यूँ नहीं बहके ये मन
मुस्कुराए जा रहे मेरे लब की रानाई तुम

शांत ऊपर से लहर भीतर अनगिनत है भँवर
थाह न मिल पाये उस झील की गहराई तुम

        #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...