Tuesday, 30 May 2017

किस तरह भुलाऊँ उनको

ऐ दिल बता किस तरह भुलाऊँ उनको
फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको

काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के
तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊँ उनको

दूर तलक हर सिम्त परछाईयाँ नुमाया है
कैसे मैं बात करूँ कहाँ से लाऊँ उनको

जबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको

दिल के खज़ाने की पूँजी है चाहत उनकी
किस तरह खो दूँ मैं कैसे गवाऊँ उनको

       #श्वेता🍁

2 comments:

  1. सुन्दर ! रचना आभार "एकलव्य"

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    1. जी शुक्रिया आभार आपका ध्रुव।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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