ऐ दिल बता किस तरह भुलाऊँ उनको
फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको
काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के
तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊँ उनको
दूर तलक हर सिम्त परछाईयाँ नुमाया है
कैसे मैं बात करूँ कहाँ से लाऊँ उनको
जबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको
दिल के खज़ाने की पूँजी है चाहत उनकी
किस तरह खो दूँ मैं कैसे गवाऊँ उनको
#श्वेता🍁
फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको
काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के
तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊँ उनको
दूर तलक हर सिम्त परछाईयाँ नुमाया है
कैसे मैं बात करूँ कहाँ से लाऊँ उनको
जबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको
दिल के खज़ाने की पूँजी है चाहत उनकी
किस तरह खो दूँ मैं कैसे गवाऊँ उनको
#श्वेता🍁
सुन्दर ! रचना आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteजी शुक्रिया आभार आपका ध्रुव।
Deleteवाह वाह कमाल का लेखन...
ReplyDeleteजबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
आदरणीया श्वेता जी गूगल पर दिखी ये पंक्तियाँ बरबस खींच लाईं आपके ब्लॉग पर। पहले तो रचनाकार का नाम नहीं पता था, पर जब पता लगा तो दंग रह गया, कि इतनी महान रचनाकार से ब्लॉग के माध्यम से संपर्क में हूँ। सौभाग्य है मेरा,... करबद्ध नमन🙏🙏🙏