Thursday, 8 June 2017

अजनबी ही रहे

हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद

चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद

है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद

चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद

ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद

#श्वेता🍁

6 comments:

  1. वाह! श्वेता बहुत ख़ूब ! क्या बात है उम्दा आभार। "एकलव्य"

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    1. बहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव।।धन्यवाद।।

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  2. बहुत बढ़िया, स्वेता।

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    1. बहुत आभार ज्योति जी।शुक्रिया।

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  3. वाह क्या खूब, लिखती हैं श्वेता आप

    है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
    बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद

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    1. जी बहुत आभार शुक्रिया संजय जी आपका।आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत आभारी है।धन्यवाद।।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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