हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद
चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद
है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद
चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद
ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद
#श्वेता🍁
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद
चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद
है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद
चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद
ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद
#श्वेता🍁
वाह! श्वेता बहुत ख़ूब ! क्या बात है उम्दा आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव।।धन्यवाद।।
Deleteबहुत बढ़िया, स्वेता।
ReplyDeleteबहुत आभार ज्योति जी।शुक्रिया।
Deleteवाह क्या खूब, लिखती हैं श्वेता आप
ReplyDeleteहै बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद
जी बहुत आभार शुक्रिया संजय जी आपका।आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत आभारी है।धन्यवाद।।
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