Saturday, 10 June 2017

जब भी

जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है
किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है

हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है
जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है

जिस  रात को चाँद से तेरी बातें की हमने
सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है

जिसने भर दिया दामन को बेरंग फूलों से
उनके एक दर्द पर हम क्यों तड़पने लगते है

दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती
तेरा जिक्र होते ही दरो दीवार महकने लगते है

मिटा दे हर ख्याल जेहन की किताब से लेकिन
इबारत पे उनका नाम देखकर सिसकने लगते है

        #श्वेता🍁



2 comments:

  1. जेहन की खिड़कियों की कुंद हो रही सांकलों को बामुश्किल खोला तो बाहर खुला आसमान था,पहली बार पाया कि आसमान का रंग भी नीला होता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. क्या बात बहुत खूब...👌👌
      आभार शुक्रिया आपका ।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...