तपती धरा के आँगन में
उमड़ घुमड़ कर छाये मेघ
दग्ध तनमन के प्रांगण में
शीतल छाँव ले आये मेघ
हवा होकर मतवारी चली
बिजलियो की कटारी चली
लगी टपकने अमृत धारा
बादल के मलमली दुपट्टे
बरसाये अपना प्रथम प्यार
इतर की बोतलें सब बेकार
लगी महकने मिट्टी सोंधी
नाचे मयूर नील पंख पसार
थिरक बूदों के ताल ज्यों पड़ी
खिली गुलाब की हँसती कली
पत्तों की खुली जुल्फें बिखरी
सरित की सूखी पलकें निखरी
पसरी हथेलियाँ भरती बूँदें
करे अठखेलियाँ बचपन कूदे
मौन हो मुस्काये मंद स्मित धरा
बादल के हिय अमित प्रेम भरा
प्रथम फुहार की लेकर सौगात
रूनझुन बूँदे पहने आ रही बरसात
#श्वेता🍁
प्रथम फुहार की आहात कितना सुखद होती है ... फिर उसका आना तो सोंधी सौधी महक बार जाता है ... रुन्दर रचना ...
ReplyDeleteजी नासवा जी सही कहा आपने,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार शुक्रिया आपका जी।
Deleteप्रेम की प्रथम फुहार मन को तरोताजा कर देती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूति
बधाई
जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका
Deleteमहोदय।
सुदर पबित्र आभा लिए काव्यात्मक शब्दों का अनूठा संकलन जैसे परमात्मा के प्रथम दर्शन के पश्चात होता अहसास। लाजवाब।
ReplyDeleteजी आभार शुक्रिया आपका इतने मनमोहक शब्दों में प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteवाह!! पहली फुहार बहुत खूब .....
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