तपती धरा के आँगन में
उमड़ घुमड़ कर छाये मेघ
दग्ध तनमन के प्रांगण में
शीतल छाँव ले आये मेघ
हवा होकर मतवारी चली
बिजलियो की कटारी चली
लगी टपकने अमृत धारा
बादल के मलमली दुपट्टे
बरसाये अपना प्रथम प्यार
इतर की बोतलें सब बेकार
लगी महकने मिट्टी सोंधी
नाचे मयूर नील पंख पसार
थिरक बूदों के ताल ज्यों पड़ी
खिली गुलाब की हँसती कली
पत्तों की खुली जुल्फें बिखरी
सरित की सूखी पलकें निखरी
पसरी हथेलियाँ भरती बूँदें
करे अठखेलियाँ बचपन कूदे
मौन हो मुस्काये मंद स्मित धरा
बादल के हिय अमित प्रेम भरा
प्रथम फुहार की लेकर सौगात
रूनझुन बूँदे पहने आ रही बरसात
#श्वेता🍁