मैं नहीं सुनाना चाहती तुम्हें
दादी-नानी ,पुरखिन या समकालीन
स्त्रियों की कुंठाओं की कहानियां,
गर्भ में मार डाली गयी
भ्रूणों की सिसकियाँ
स्त्रियों के प्रति असम्मानजनक व्यवहार
समाज के दृष्टिकोण में
स्त्री-पुरूष का तुलनात्मक
मापदंड।
मैं नहीं भरना चाहती
तुम्हारे हृदय में
जाति,धर्म का पाखंड
आडंबरयुक्त परंपराओं की
कलुषिता
घृणा,द्वेष,ईष्या जैसे
मानवीय अवगुण
एवं अन्य
सामाजिक विद्रूपताएं।
मैं बाँधना चाहती हूँ तुम्हारी
नाजुक उम्र की सपनीली
ओढ़नी में...
अंधेरे के कोर पर
मुस्काती भोर की सुनहरी
किरणों का गुच्छा,
सुवासित हवाओं का झकोरा,
कुछ खूशबू से भरे फूलों के बाग
नभ का सबसे सुरक्षित टुकड़ा,
बादलों एवं सघन पेड़ों की छाँव,
चिड़ियों की मासूम,
बेपरवाह किलकारियाँ,
मुट्ठीभर सितारे,
सकोरा भर चाँदनी,
चाँद का सिरहाना,
सारंगी की धुन में झूमते
थार के ऊँट और
बाँधनी के खिले रंग,
समुंदर की लहरों का संयम
शंख और सीपियाँ
प्रकृति के शाश्वत उपहारों
से रंगना चाहती हूँ
तुम्हारे कच्चे सपनों के कोरे पृष्ठ
ताकि तुम्हारा कोमल हृदय
बिना आघात समझ सके
जीवन सुंदरता,कोमलता और
विस्मयकारी विसंगतियों से युक्त
गूढ़ जटिलताओं का मिश्रण है।
भौतिक सुख-सुविधाओं से
समृद्ध कर तुम्हें
सुखद कल्पनाओं का हिंडोला
दे तो सकती हूँ
किंतु मैं देना चाहती हूँ
सामान्य व्यवहारिक प्रश्न पत्र
जिसे सुलझाते समय
तुम जान सको
रिश्तों का गझिन गणित
यथार्थ के मेल
की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
भावनाओं का भौतिकीय परिवर्तन
स्नेह के काव्यात्मक छंद
तर्क के आधार पर
विकसित कर सको
सारे अनुभव जो तुम्हारी
क्षमताओं को सुदृढ कर
संघर्षों से जूझने के
योग्य बनाये।
सुनो बिटुआ,
सदैव की तरह
आज भी मैं दे न पायी तुम्हें
तुम्हारे जन्मदिन पर
कोई भी ऐसा उपहार
जो मेरा हृदय संतोष से भर सके
किंतु मुझे विश्वास है मैंने जो
बीज रोपे हैं तुम्हारे मन की
उर्वर क्यारी में उसपर
फूटेंग मानवीय गुणों के
पराग से लिपटे
फूटेंग मानवीय गुणों के
पराग से लिपटे
सुवासित पुष्प,
मेरे आशीष
मेरे अंतर्मन की
मेरे अंतर्मन की
शुभ प्रार्थनाओं और
कर्म की ज्योति
प्रतिबिंबित होकर
पथ-प्रदर्शक बनकर
आजीवन तुम्हारे
साथ रहेंगे।
©श्वेता सिन्हा
१८जुलाई२०२०