Tuesday, 25 April 2017

कहाँ छुपा है चाँद

साँझ से देहरी पर बैठी
रस्ता देखे चाँद का
एक एक कर तारे आये
न दीखे क्यूँ चंदा जाने
क्या अटका है पर्वत पीछे
या लटका पीपल नीचे
बादल के परदे से न झाँके
किससे पूछूँ पता मैं
मेरे सलोने चाँद का

अबंर मौन बतलाता नहीं
लेकर संदेशा भी आता नहीं
कौन देश तेरा ठौर न जानूँ
मैं तो बस तुझे दिल से मानूँ
क्यों रूठा तू बता न हमसे
बेकल मन बेचैन नयन है
भर भर आये अब पलकें भी
बोझिल मन उदास हो ढूँढें
दीखे न निशां मेरे चाँद का

          #श्वेता🍁

4 comments:

  1. अबंर मौन बतलाता नहीं
    लेकर संदेशा भी आता नहीं 👌👌👌

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    1. बहुत आभार आपका p.k ji

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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