फटे चीथड़े लपेटे
मलिन चेहरे पर
निर्विकार भाव ओढ़े,
रूखे भूरे बिखरे
बालों का घोंसला ढोते,
नंगे पाँव , दोरंगे फटे जूते पहने
मटमैली पोटली को
छाती से चिपकाये
अनमोल खजाने सा,
निर्निमेष ताकते
आते जाते लोगों को,
खुद में गुम कहीं
फेंकी गयी जूठन ढूँढते
निरूद्देश्य जीवन ढोते,
मासूम बिलबिलाते बच्चे
कचरे के ढेर में
खुशियाँ बीनते,
आवारा कुत्तों के संग
पत्तलों को साझा करते
खिलने से पहले मुरझाता बचपन,
खिलने से पहले मुरझाता बचपन,
सीने से कुपोषित बच्चे चिपकाये
चोर निगाहों से इधर उधर देखती
अधनंगी साँवली देह छुपाती
लालची,चोर का तमगा लगाये
बेबस लाचार औरतें,
पेट कमर पर चिपकाये
एक एक कदम घसीटते
ज़िदगी की साँसें गिनते,
कब्र में पैर लटकाये
वक्त की मार सहते असहाय बूढ़े ,
कब्र में पैर लटकाये
वक्त की मार सहते असहाय बूढ़े ,
चारकोल के मौन सड़क
किनारों पर खडे
धूल, गर्द सें सने पेड़,
मैदानों के कोने में उगी घास
राह के कंकड़
की तरह उपेक्षित,
ये बेमतलब के लावारिस लोग
रब ने ही बनाए है,
शायद, हाथों में इनके
तकदीर की लकीर
खींचना भूल गया है।
जी चाहता है,
काँच के किसी जादुई टुकड़े से
हर एक के हथेलियों में
पलक झपकते खींच दूँ
खुशियों भरी तकदीर की रेखा।
क्या बात
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
अति आभार आपका लोकेश जी।
Deleteतहेदिल से बहुत शुक्रिया।
आदरणीय श्वेता जी समाज के उपेक्षित और वंचित तबके को लेकर आपका संवेदनशील चिंतन रचना में मुखरित हुआ है।
ReplyDeleteरूह को झिंझोड़ता शब्दचित्र !
परिवेश का सूक्ष्म अवलोकन कर आपने उनकी आवाज़ को शब्द दिए हैं जो समाज में हेय दृष्टि से देखे-समझे जाते हैं।
मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है कि यदि समाज समतामूलक होगा और समृद्ध होगा तो अपराधों की संख्या नगण्य होगी।
एक संवेदनशील कवियत्री का ह्रदय मचलकर जादुई रेखा हाथ में खींचने को आतुर हो जाता है क्योंकि उसे वास्तविकता का एहसास है कि चाहते हुए भी इनके हालात बदलने वाले नहीं हैं।
बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आभार आभार अति आभार आपका रवींद्र जी,रचना का मूल भाव को समझकर प्रतिक्रिया करने के लिए आपका शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteआपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।
आभार।
सादर।
नमस्ते, आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में आगामी रविवार 24 -09 -2017 को प्रकाशनार्थ 800 वें विशेषांक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
ReplyDeleteविशेषांक में सम्मान पाना,सौभाग्य है।अत्यंत आभार आपका रवींद्र जी।तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....।
पेट कमर पर चिपकाये
एक एक कदम घसीटते......
लाजवाब.....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।तहेदिल से शुक्रिया।सस्नेह।
Deleteश्वेता जी आपकी लेखनी काबिले तारीफ़ है. बहुत हर रचना हृदय को झकझोर देती है.
ReplyDeleteसम्वेदना से लबरेज यथार्थ चित्रण.सादर
बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी, आपके सराहनीय शब्दों के लिए।
Deleteवाह..
ReplyDeleteहकीकत बयां करती रचना
आदर सहित
आभार आपका दिबू...सखी सस्नेह शुक्रिया।
Deleteश्वेता जी मन को छू गई आपकी रचना .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी,शुक्रिया तहेदिल से आपका।
Deleteअत्यंत संवेदनशील मन की रचना । काश ये जादू हो पाता !
ReplyDeleteजी,मीना जी काश.कि ऐसा हो पाता।आभार आपका तहेदिल हे मीना जी।सस्नेह।
Deleteकाश की ऐसा हो पाता ... पर दूसरे की तकदीर कौन लिख सका है ... हाँ इंसान के बस में जितना हो वो तो करना ही चाहिए ... संवेदनशील रचना है ...
ReplyDeleteआभार आभार अति आभार आपका नासवा जी।
Deleteकाश कि ऐसा हो पाता।जी हाँ हमारे बस में जो है वो तो कर ही सकते है। सही कहा आपने।
शुक्रिया बहुत सारा।
सादर।
काँच के किसी जादुई टुकड़े से
ReplyDeleteहर एक के हथेलियों में
पलक झपकते खींच दूँ
खुशियों भरी तकदीर की रेखा।
काश ऐसा हो पाता, स्वेता!! खैर, ऐसा हो नहीं पाता फ़िर भी जिस इंसान के मन के भाव इतने सुंदर हैं वो कम से कम किसी का अनिष्ट तो नहीं करेगा। लेकिन इंसान बस इतना ही कर ले तो हमारा देश एक खुशहाल देश बन जाएगा।
आपकी भावना बहुत ही सुंदर है ज्योति जी आपके लेख सदैव समाजोपयोगी रहे है,आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी जी।
Deleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका।सस्नेह
सादर
वाह!
ReplyDeleteअत्यंत आभार आपका विश्वमोहन जी।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका
सादर।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteखूब सारा आभार आपका सर।
Deleteकविता चलचित्र की भाँती सामने से गुजर गई परन्तु अफ़सोस कि मैं उनलोगों के लिए कुछ नहीं कर पा रहा. गर्म चारकोल की सडकों पर नंगे पाँव चलते देख, मेरी आँखों में आँसू आ जाते है . मार्मिक कविता एवं दुखद स्थिति .
ReplyDeleteजी हमारी विडंबना ही यही है कि चाहकर भी बस थोड़ी सी मदद ही कर पाते है खाना या कपड़ा देकर उनकी ज़िदगी नहीं बदल सकते।
Deleteआभार आभार आपका खूब सारा आदरणीय राकेश जी।
श्वेता जी, आप बहुत आशावादी हैं. भगवान आपको हर संभव सफलता दे.
ReplyDeleteजी,आदरणीय रंगराज जी सच पहचाना आपने,जी आपकी शुभ आशीष भरी शुभकामनाएँ अवश्य फलीभूत होगी।
Deleteआपका अति आभार,खूब सारा शुक्रिया।
आपकी लिखी रचना सोमवार 8 जनवरी 2018 के 906 वें अंक के लिए साझा की गयी है
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार सुधा जी मेरी रचना को अपनी पसंद में शामिल करने के लिए। बहुत आभारी है आपके हम।तहेदिल से शुक्रिया।
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