Tuesday 19 September 2017

कास के फूल

शहर के बाहर खाली पड़े खेत खलिहानों में,बिछी रेशमी सफेद चादर देखकर मन मंत्रमुग्ध हो गया।जैसे बादल सैर पर निकल आये हो।लंबे लंबे घास के पौधे पर लगे नाजुक कास के फूल अद्भुत लग रहे थे। अनायास ही तुलसीदास की पंक्तियाँ याद आ गयी-

 ‘वर्षा विगत शरद रितु आई, देखहूं लक्ष्मण परम सुहाई,
  फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढा़ई'

     कास के फूल खिलने का मतलब बरसा ऋतु की विदाई और शरद का आगमन।मौसम अंगड़ाई लेने लगता है।हवा की गरमाहट नरम होने लगती है,मौसम सुहावना होने लगता है।


कास के फूल
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बादल की झोली से झरे है
बूँदे बरखा की लडि़यों से
बनकर बर्फ के धवल वन
पठारों पे खिले कास के फूल

झुंड घटा के धरती पर उतरे
सरित, तालाब,मैदान किनारे
हरित धरा का आँचल भरने
सफेद फूलों की टोकरी धरने
धवल पंखों की चादर ओढ़े
हौले मुसकाये कास के फूल

रेशमी नाजुक डोर में लिपटे
श्यामल फुनगी सितारे चिपटे
बड़ी अदा से अंगडाई ले
छुईमुई  रूई के फाहे उड़े
करने स्वागत नयी ऋतु का
खिलखिलाये कास के फूल

झूमे पवन संग लहराये 
चूमे धरा को  बलखाये
मुग्ध नयन हो सम्मोहित
बाँधे नुपुर बड़े घास खड़े
करते निर्जन को श्रृंगारित
है मदमाये कास के फूल

   #श्वेता🍁


22 comments:

  1. कास के फूल जब खिलते हैं तो लगता है जैसे किसी ने तालाब में रुई बिछा दी हो
    बहुत खूबसूरत नजारा होता है
    बहुत सुंदर रचना

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    1. हाँ सच में,बहुत बहुत सुंदर लगता है।
      आभार बहुत सारा लोकेश जी।
      तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  2. कास के फूलों के सौंदर्य का कितना सुंदर चित्रण किया है आपने ! प्रकृति का कोई रूप, कोई आयाम आपकी सौंदर्यदृष्टि से बच नहीं पाया । बादलों का कास के फूल बन धरती पर उतरना.... अति सुंदर !

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    1. आपके सुंदर सराहना और नेह भरी पंक्तियों के लिए तहेदिल से बहुत बहुत आभार मीना जी।
      सस्नेह।

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  3. आदरणीय श्वेता जी ------ कास के फूल बादल की झोली से झरे और आपकी लेखनी से शब्दबद्ध हो धन्य हो गए | अद्भुत और अप्रितम !!!!!!!!!!!

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    1. आभार आभार बहुत आभार आदरणीय रेणु जी।आपके सुंदर शब्द और इतनी सराहना पाकर हम जरूर अभिभूत है जी।
      तहेदिल से शुक्रिया आपका।सस्नेह।

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  4. बहुत ख़ूबसूरत शब्द चित्र...बहुत उम्दा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।
      आपकी सराहना भरे शब्द ऊर्जा प्रवाहित कर गये।

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  5. वाकई चिर सौन्दर्यदृष्टि है आपकी......
    कास के फूल भी अब वाकई अच्छे लगने लगे हैं..आपकी नजर से देखा... आश्चर्य हुआ ....क्या दृष्टिकोण है....!!!!
    वाह!!!!

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    1. जी सुधा जी प्रकृति का हर रूप अनोखा और खूबसूरत है जी।आपके नेहयुक्त शब्द बहुत अच्छे लगे।आभार आभार अति आभार आपका सुधा जी।सस्नेह।

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  6. ' कास के फूल ' का अप्रतिम श्वेताभ साहित्यिक सौन्दर्य! 'करते निर्जन को श्रृंगारित'!
    बधाई !!!

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    1. जी,विश्वमोहन जी आपकी मनभावनी प्रतिक्रिया ने उत्साह का संचरण किया।
      आभार आभार अति आभार आपके आशीर्वचनों के लिए।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  7. शब्दों‎ का अभाव महसूस होता है प्रंशसा के लिए जितने बार पढ़ूँ नई ही लगती है .

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    1. जी,मीना जी आपके नेह भरे शब्दों के लिए खूब खूब आभार।तहेदिल से शुक्रिया जी।सस्नेह।

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  8. कास के फूल कहते हैं इन्हें पता ही नहीं था ... बहुत ही सुन्दर शब्दों में ऋतू आगमन और प्राकृति के सौन्दर्य को निहाती ह्यु रचना है ...

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    1. बहुत बहुत आभार नासवा जी,हृदयतल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  9. बहुत सुंदर चित्रण. मुग्ध हूं कास के फूल देखकर.

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  10. वाह ! क्या कहने हैं ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका सर।अपना आशीष बनाये रखे।

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  11. श्वेता सिन्हा जी
    " प्रकृति के अनमोल खजाने को देख हम मन्त्र-मुग्ध होते रहते है जिसका नाम और उसकी उपस्थिति का महत्व हमें पता नहीं होता ऐसा ही एक फूल - "कास के फूल " के बारे में विस्तृत जानकारी एवं प्रकृति प्रेम को उजागर करती सुन्दर कविता। श्वेता सिन्हा जी के शब्द - कास के फूल खिलने का मतलब बरसा ऋतु की विदाई और शरद का आगमन।मौसम अंगड़ाई लेने लगता है।हवा की गरमाहट नरम होने लगती है,मौसम सुहावना होने लगता है।।"
    आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/09/36.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. अति आभार आपका आदरणीय राकेश जी।आपने
      रचना को मान दिया तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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