भोर की अलगनी पर लटके
घटाओं से निकल बूँदें झटके
स्वर्ण रथ पर होकर सवार
भोर का संजीवन लाता सूरज
झुरमुटों की ओट से झाँकता
चिड़ियों के परों पर फुदकता
सरित धाराओं के संग बहकर
लिपट लहरों से मुस्काता सूरज
धरा के कण कण को चूमता
बाग की कलियों को सूँघता
झिलमिल ओस की बूँदें पीकर
मदमस्त होकर बौराता सूरज
उजाले की डिबिया को भरकर
पलक भोर की खूब सजाता
गरमी,सरदी, बसंत या बहार
साँकल आके खड़काता सूरज
महल झोपड़ी का भेद न जाने
जीव- जगत वो अपना माने
उलट किरणों की भरी टोकरी
अंधियारे को हर जाता सूरज
#श्वेता🍁
सस्नेह
ReplyDeleteधारा प्रवाहता लिये बहुत प्यारी अलंकृत रचना
पाठ्यक्रम मे सामिल करने योग्य।
सुंदर कोमल रचना।
सुंदर सौरभ यूं बिखरा मलय गिरी से
उदित होने लगा बाल पंतग इठलाके
चल पड़ कर्तव्य पथ के राही अनुरागी
प्रकृति सज उठी है ले नये श्रृंगार मधुरागी।
क्या बात ..सरस और सहज भाव सा लेखन मन को आनंदित करता सा संग कर्म साहस भरता सा
ReplyDeleteवाह! प्रकृति की सौंदर्यमयी छटा बिखेरती एक खूबसूरत रचना। बिंबों और प्रतीकों का इस्तेमाल रचना में कलात्मकता को अनूठा अंदाज़ दे रहा है! आप की रचनाएं वाचक के मन मस्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती हैं ऐसा सृजन सदैव स्मरणीय और श्लाघनीय बन जाता है। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअतीसुन्दर वर्णन
ReplyDeleteबसंत के खुशनुमा मौसम बिखेरती बेहद सुन्दर कविता....रचना कों पढ़कर मन प्रसन्न हो गया
ReplyDeleteमहल झोपड़ी का भेद न जाने
ReplyDeleteजीव- जगत वो अपना माने
उलट किरणों की भरी टोकरी
अंधियारे को हर जाता सूरज
बहुत ही सुंदर रचना, स्वेता।
क्या बात है
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
प्रकृति केंद्रित रचनाओं पर आप का खूबसूरत कब्जा बरकरार है ! सूर्योदय की सुनहरी काव्यात्मक व्याख्या बहुत ही आकर्षक है ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteअब ठीक है
ReplyDeleteसादर....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसचमुच पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने योग्य रचना !
ReplyDeleteसूर्योदय के समय प्रकृति का अति मनोरम रूप ....
वाह!!!
अतिसुन्दर...लाजवाब...