Friday, 8 December 2017

सूरज


भोर की अलगनी पर लटके
घटाओं से निकल बूँदें झटके
स्वर्ण रथ पर होकर सवार
भोर का संजीवन लाता सूरज

झुरमुटों की ओट से झाँकता
चिड़ियों के परों पर फुदकता
सरित धाराओं के संग बहकर
लिपट लहरों से मुस्काता सूरज

धरा के कण कण को चूमता
बाग की कलियों को सूँघता
झिलमिल ओस की बूँदें पीकर
मदमस्त होकर बौराता सूरज 

उजाले की डिबिया को भरकर
पलक भोर की खूब सजाता 
गरमी,सरदी, बसंत या बहार 
साँकल आके खड़काता सूरज

महल झोपड़ी का भेद न जाने
जीव- जगत वो अपना माने
उलट किरणों की भरी टोकरी
अंधियारे को हर जाता  सूरज


       #श्वेता🍁

11 comments:

  1. सस्नेह
    धारा प्रवाहता लिये बहुत प्यारी अलंकृत रचना
    पाठ्यक्रम मे सामिल करने योग्य।
    सुंदर कोमल रचना।

    सुंदर सौरभ यूं बिखरा मलय गिरी से
    उदित होने लगा बाल पंतग इठलाके
    चल पड़ कर्तव्य पथ के राही अनुरागी
    प्रकृति सज उठी है ले नये श्रृंगार मधुरागी।

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  2. क्या बात ..सरस और सहज भाव सा लेखन मन को आनंदित करता सा संग कर्म साहस भरता सा

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  3. वाह! प्रकृति की सौंदर्यमयी छटा बिखेरती एक खूबसूरत रचना। बिंबों और प्रतीकों का इस्तेमाल रचना में कलात्मकता को अनूठा अंदाज़ दे रहा है! आप की रचनाएं वाचक के मन मस्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती हैं ऐसा सृजन सदैव स्मरणीय और श्लाघनीय बन जाता है। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  4. अतीसुन्दर वर्णन

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  5. बसंत के खुशनुमा मौसम बिखेरती बेहद सुन्दर कविता....रचना कों पढ़कर मन प्रसन्न हो गया


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  6. महल झोपड़ी का भेद न जाने
    जीव- जगत वो अपना माने
    उलट किरणों की भरी टोकरी
    अंधियारे को हर जाता सूरज
    बहुत ही सुंदर रचना, स्वेता।

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  7. क्या बात है
    बहुत ही उम्दा

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  8. प्रकृति केंद्रित रचनाओं पर आप का खूबसूरत कब्जा बरकरार है ! सूर्योदय की सुनहरी काव्यात्मक व्याख्या बहुत ही आकर्षक है ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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  9. अब ठीक है
    सादर....

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. सचमुच पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने योग्य रचना !
    सूर्योदय के समय प्रकृति का अति मनोरम रूप ....
    वाह!!!
    अतिसुन्दर...लाजवाब...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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