Sunday, 11 February 2018

चिरयौवन प्रेम


तुम्हारे गुस्से भरे
बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर 
देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ
भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में
बैशाख की दुपहरी का ताव
देख पाना मेरे बस का नहीं न
हमेशा की तरह चुपचाप 
सिर झुकाये,
गीली पलकों का बोझ लिये 
मैं सहमकर तुम्हारे सामने से हट जाती हूँ
और तुम, ज़ोर से 
दरवाज़ा पटक कर चले जाते हो
कमरे में फैली शब्दों की नुकीली किर्चियों को
 बिखरा छोड़कर 
 ‎बैठ जाती हूँ खोलकर कमरे की खिड़की 
हवा के साथ बहा देना चाहती हूँ
 कमरे की बोझिलता 
नाखून से अपने हरे कुरते में किनारों में कढ़े
लाल गुलाब से निकले धागों को तोड़ती
तुम्हारी आवाज़ के
आरोह-अवरोह को महसूस करती हूँ
सोचती हूँ 
कैसे बताऊँ बहुत दर्द होता है
शब्दों के विष बुझे बाणों के तीक्ष्ण प्रहार से
अंतर्मन लहुलुहान हो जाता है
क्यों इतनी कोशिशों के बाद भी
पर हर बार जाने क्यों,कैसे तुम नाराज़ होते हो
तुम्हारी असंतुष्टि से छटपटाती 
तुम्हारी बातों की चुभन झटकने की कोशिश में
देखने लगती हूँ 
नीेले आकाश पर टहलते उदास बादल
पेड़ों की फुनगी से उतरकर
खिड़की पर आयी गौरेया
जो मेरे चेहरे को गौर से देखती 
अपनी गुलाबी चोंच से 
परदे को हटाती,झाँकती, फिर लौट जाती है
चुपचाप
दूर पहाड़ पर उतरे बादल
ढक लेना चाहते है मेरी आँखों का गीलापन
मन के हर कोने में 
मरियल-सी ठंडी धूप पसर जाती है
बहुत बेचैनी होती है 
तुम्हारे अनमने चेहरे पर
गुस्से की लकीरों को पढ़कर 
ख़ुद को अपनी बाहों में बांधे
सबके बीच होकर भी मानो
बीहड़ वन में अकेली भटकने लगती हूँ
फिर,
हर बार की तरह एक-आध घंटों के बाद
जब तुम फोन पर कहते हो
सुनो, खाना मत बनाना
हम बाहर चलेगे आज
मेरी भरी,गीली आवाज़ को तुम 
जानबूझकर अनसुना कर देते हो
कुछ भी ऐसा कहते हो 
कि मैं मुसकुरा दूँ, 
मजबूरन तुम्हारी बातों का जवाब दूँ,
उस एक पल में ही सारी उदासी उड़ जाती है
तुम्हारी बातों के ताज़े झोंके के साथ
विस्मृत हो जाती है सारी कड़वाहट
शहद सी मन में घुलकर
सुनो, तुम भले न कहो
पर , मैं महसूस कर सकती हूँ 
तुम्हारे जताये बिना 
तुम्हारे हृदय में 
अपने लिए गहरे, चिरयौवन प्रेम को।

   #श्वेता🍁

42 comments:

  1. वाह प्रिय श्वेता क्या खूब लिखा
    आप के लेखन की यही विशेषता है
    की आप उस पल को जिवंत कर देती हो
    दर्द भरे लम्हों को भी क्या खूब सजाया आपने
    दर्दे हाल लिखा है पर कमाल लिखा है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय नीतू,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  2. अद्भुत प्रिय श्वेता जी वाह ...छोटे छोटे एहसासों को लेखन मै पिरो कर जो कुछ सूखे कुछ खिले हुऐ एहसासों की जो माला गुँथी है! सत्यता का बोध कराती !
    उम्दा

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय इन्दिरा जी, तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  3. भावों का भव्य शाब्दीकरण...

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    1. हृदयतलसे अति आभार आपका सर।

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  4. ओह ! क्या कमाल का लिख देतीं हैं आप ! "नीले आकाश पर टहलते उदास बादल" मन के प्रत्यय वाह्य संसार की वस्तुओं पर चस्पा हो जाते हैं ! मन उदास है तो बादल उदास ! मन खुश तो बादल खुद ! रिश्तों के बीच तल्खियों और प्रेम को रेखांकित करती हुई खूबसूरत रचना ! बहुत सुंदर आदरणीया ! बहुत सुंदर ।

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    1. हृथयतल से अति आभार आपका सर। आपकी सराहना सदैव विशेष है। अपना आशीष बनाये रखियेगा कृपया।

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  5. वाह शानदार श्वेता।
    सांगोपांग, एक एक बिम्ब को ऐसे परिलक्षित करती हो जैसे सारी कायनात आपके हृदय के उद्गगार को प्रतिबिंबित करने जुट गई अद्भुत प्रिय बहन आपकी बेजोड लेखनी और आपके चित्र लिखित भाव अनुपम है ये तो है काव्य पक्ष... और भाव पक्ष पराकाष्ठा है प्रेम की... अनंत प्रेम है दिख रहा है साफ पर कोई अहम है जो रोज सर उठाता है वेदना देता है पर उस दीये हुवे दर्द से खुद घायल हो कर जाने कौनसा मरहम लगाने की कोशिश......
    वाह!!
    शुभ दिवस ।

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    1. अति आभार आपका दी,हृदयतल से बेहद आभार।
      आपके आशीष और उत्साहवर्धक शब्दों से ही लेखनी का नया निखरकर आता है।
      अपना स्नेहाषीश बनाये रखिएगा दी।

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  6. वाह!बहुत ही खूबसूरती से हर भावों को शब्दों के मोती से संजोया है.. अपने लिए गहरे, चिरयौवन प्रेम को।
    बहुत सुंंदर, श्वेता जी।

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    1. बहचत बहुत आभार आपका पम्मी जी,हृदयतल से अति आभार आपका।

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  7. बहुत ही सुंदर ! अहसास वाष्पीभूत होकर ऊपर, और ऊपर उठते चले जाते हैं और सघन होकर बरस पड़ते हैं आपकी कविता में....शब्दों की रिमझिम दूर तक सुनाई देती है....

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    1. प्रिय मीना जी,आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर मन अभिभूत है। हृदयतल.से अति आभार आपका। आपके स्नेह की सदैव आकांक्षी हूँ।

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  8. वाह!!!
    बहुत लाजवाब....
    जाने कितने हृदय पढे है आपने जो भी रचना पढेगा यही सोचेगा अक्सर ऐसा होता है ....उन भावों शब्द दिये जिन्हे खुद से कहना भी मुश्किल सा लगता है बस समझ आता है....बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति...
    वाहवाह...

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    1. तहेदिल से अति आभार आपका सुधा जी। आपकी सराहना भरे शब्द ऊर्जा भर गये लेखनी में। आपके स्नेहिल साथ की आकांक्षी हूँ।

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  9. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १२ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    1. मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान दिया आपने, बहुत-बहुत आभारी है हम आपके आदरणीय।

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  10. .. कितना खुबसूरत लिखती हैं आप.. वेदना से आहत मन...और उस मन से निकलते वेदना के उद्गार.. सबने सारी चीज़ें कह दी... मेरे लिए शब्द कम पड़ गये...!!
    रिश्तों की बारीकियां आपकी लेखनी में स्वत: दिखती है,खासकर उन रिश्तों में जहां दर्द छिपा होता है, पढ़ते पढ़ते युं लगता है यही रिश्ते तो हम जी रहे हैं ... बहुत खूबसूरत रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनु,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हमेशा बहुत अच्छी लगती है:)

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  11. सुंदर!
    बिंबों और प्रतीकों का ख़ूबसूरती से प्रयोग करते हुए एक शब्दचित्र को जीवंत कर दिया है एहसासों की लबालब अभिव्यक्ति ने।
    कल्पना और यथार्थ का अद्भुत मिश्रण परिलक्षित हो रहा है प्रस्तुत काव्य रचना में।
    शब्द चयन और लेखन कौशल निसंदेह कवियत्री की परिपक्वता को स्थापित कर रहा है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीया श्वेता जी।
    लिखते रहिए।

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    1. हृदय से बहुत आभारी हूँ आपकी आदरणीय रवींद्र जी।आपने सदैव मेरा उचित मार्गदर्शन किया है। आपकी सराहना ने और विश्लषणात्मक प्रतिक्रिया ने हमेशा मनोबल में अभिवृद्धि की है। आपके इस बहुमूल्य साथ के लिए हृदय से आभारी हूँ।
      कृपया अपनी शुभकामनाओं का साथ बनाये रखें।

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  12. वाह!!श्वेता ,क्या खूब लिखती हैं आप ,सुंंदर शब्द संयोजन ....मन के उदगारों का सुंंदर चित्रण .....कल्पनापटल पर दृश्य ...दिखाई देने लगता है ..पढते पढते ..।

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    1. तहेदिल से अति आभार आपका आदरणीय शुभा दी,आपकी ऐसी सराहना बहुत मायने रखती है मेरे लिए। कृपया,इस सफर में स्नेहिल साथ बनाये रखिएगा।

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  13. बहुत खूब..,अति सुन्दर श्वेता जी .

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा:)

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  14. दैनिक दिनचर्या की श्वेत-श्याम तस्वीर को खूबसूरत रंगों के
    संयोजन से आकर्षक बना दिया है आपने ।शुभकामनाएँ ।

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    1. अति आभार आपका पल्लवी जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  15. किसी भी विषय को जीवंत करना आपकी रचनात्मकता का आधार है
    बहुत सुंदर प्रयोग से सजी सुंदर रचना
    कमाल

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    1. जी आदरणीय आपकी सराहना सदैव मुझे और भी अच्छा लिखने को प्रेरित करती है। हृदयतल से बहुत आभारी है आपके।

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  16. बहुत सुन्दर श्वेता जी ! मियां-बीबी में नोंक-झोंक के अपने फ़ायदे हैं. हमारे घर में नोक-झोंक हो तो उसके बाद घर में पकवान बनना या बाहर जाकर चाट-पार्टी होना निश्चित होता है.

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    1. जी सर :)
      आपकी उपस्थित मेरे ब्लॉग पर, मेरे लिए आपके आशीष भरे शब्दों से अभिभूत हूँ।
      जी,सही कहा आपने पति-पत्नी की नोंक-झोंक से ही जीवन.के पलों में खूबसूरती है।

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  17. वाह बहुत ख़ूब मानो एक चलचित्र आँखो के आगे जीवित हो उठा ,बहतरीन ।

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    1. अति आभार.आपका रितु जी,आपकी सराहना मन प्रफुल्लित कर गयी।हृदयतल से शुक्रिया आपका।

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  18. वाह ! जिससे प्रेम करता है कोई क्रोध भी तो उसी पर करेगा....जो प्रेम क्रोध को भी स्वीकार ले वही तो है असली वाला..

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    1. जी सही अनिता जी:)
      रचना का भूल भाव समझने के लिए आपका हृदय से आभार। कृपया नेह बनाये रखे।

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  19. जी बहुत बहुत आभारी है आपके हम आदरणीय रवींद्र जी।

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  20. प्रिय श्वेता जी -- गृहस्थी के शाश्वत रंगों में से एक है नौक झोक -- जिसे आपने बड़ी खूबसूरती से पिरोया है अपनी रचना में | समर्पण और चिर प्रेम की अनुभूति से भरी रचना में प्रेम का रंग गहरा है | सस्नेह ------

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  21. आहत मनोविज्ञान का जीवंत चित्रण जो किसी भी पाठक पति को अपराध भाव का अहसास दिला दे.

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  22. असल मतलब तो प्रेम समझने में है ...
    जब तक प्रेम है समझने की ताक़त है ... सन ठीक है ... ये भी एक तरह का पक्ष है जीवन का ...

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  23. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...