मदिर प्रीत की चाह लिये
हिय तृष्णा में भरमाई रे
जानूँ न जोगी काहे
सुध-बुध खोई पगलाई रे
सपनों के चंदन वन महके
चंचल पाखी मधुवन चहके
चख पराग बतरस जोगी
मैं मन ही मन बौराई रे
"पी"आकर्षण माया,भ्रम में
तर्क-वितर्क के उलझे क्रम में
सुन मधुर गीत रूनझुन जोगी
राह ठिठकी मैं चकराई रे
उड़-उड़कर पंख हुये शिथिल
नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
क्षणभर भी जी न पाई रे
जीवन वैतरणी के तट पर
तृप्ति का रीता घट लेकर
मोह की बूँदें भर-भर जोगी
मैं तृष्णा से अकुलाई रे
-श्वेता सिन्हा
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteजी,सादर आभार अभिलाषा जी।
ReplyDeleteहृदययल से बेहद शुक्रिया।
वाहह!!बहुत सुंंदर अभिव्यक्ति श्ववेता जी..
ReplyDeleteजी,सादर आभार पम्मी जी।
Deleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया।
मैं तृष्णा से अकुलाई रे
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.... शानदार
जी,सादर आभार लोकेश जी।
Deleteहृदययल से बेहद शुक्रिया।
उड़-उड़कर हुये पंख शिथिल
ReplyDeleteनभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
क्षणभर भी जी न पाई रे
तृष्णा से अकुलाई रे
बहुत सुन्दर ...लाजवाब रचना....
वाह!!!
सादर आभार सुधा जी।
Deleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।
स्नेह बनाये रखें।
तृप्ति का ये रीता घट है
ReplyDeleteरीता ही रह जायेगा।
तृष्णा है यह 'आज' तुम्हारी
बीता 'कल' कहलायेगा!
जी विश्वमोहन जी,
Deleteसारगर्भित, सुंदर प्रतिक्रिया का आशीष पाकर अभिभूत हैं।
सादर आभार,हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
स्नेह बनाये रहे।
सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteसादर आभार अनुराधा जी।
Deleteहृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
बेहतरीन रचना जी
ReplyDeleteसादर आभार प्रशांत जी।
Deleteबेहद शुक्रिया आपका।
उड़ - उड़ कर हुए पंख शिथिल
ReplyDeleteनभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
बहुत ख़ूब रचना ....
सादर आभार ऋतु जी।
Deleteहृदयु से बेहद शुक्रिया आपका।
वाह
ReplyDeleteसपनों के चंदन वन महके
चंचल पाखी मधुवन चहके
चख पराग बतरस जोगी
मैं मन ही मन बौराई रे
भाव विभोर करने वाली कविता।बहुत बहुत बधाई।
सादर आभार जफ़र जी।
Deleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार दी।
Deleteपाँच लिंक में रचना का सम्मिलित होना सदैव
हर्षित कर जाता है।
"पी"आकर्षण माया,भ्रम में
ReplyDeleteतर्क-वितर्क के उलझे क्रम में
सुन मधुर गीत रूनझुन जोगी
राह ठिठकी मैं चकराई रे!!!!
प्रिय श्वेता -- लयमें बंधा ये अत्यंत सुंदर जोगी गीत मन्त्र मुग्ध कर गया | एक- एक शब्द मनभावन और बड़ा ही विद्वतापूर्ण है |
इस रचना को समर्पित कुछ शब्द --------
सुन जोगन हुए किसके जोगी ?
ये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी |
पग जोगी के काल का फेरा -
एक जगह कहाँ उसका डेरा ?
कहीं दिन तो कहीं रात बिताये -
बादल सा उड़ लौट ना आये |
जिस जोगी संग प्रीत लगायी -
करी विरह संग अपनी सगाई !!!!!!!!
इस अनुपम गीत के लिए मेरा प्यार |
ओहह दी...दी...क्या सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने...वाह्हह.. आपका अनुपम विशेष शुभ आशीष पाकर यह रचना सार्थक हो गयी।
Deleteदी आपकी सराहना सदैव मन प्रफुल्लित कर जाती है।
सादर आभार दी।
हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
स्नेह बनाये रखियेगा सदैव।
वाह सखी श्वेता बहुत सुन्दर रचना लिखी आपने
ReplyDeleteशब्दचयन लाजवाब है और भाव अप्रतीम
मन की तृष्णा ना बुझे
मिटे ना मन की आस
ये कुदरत का खेल है
परखे जो विश्वास
बहुत गहरी रचना ...बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिये 👏👏👏
वाह्हह.. प्रिय नीतू..बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिख डाली आपने...👌👌👌
Deleteआपकी ऐसी सराहना से मन गदगद है।
सादर आभार प्रिय।
हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
स्नेह बनाये रखिए।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी👌
ReplyDeleteखासकर ..
उड़-उड़कर पंख हुये शिथिल
नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
क्षणभर भी जी न पाई रे
ज्यों मरूस्थल में
ReplyDeleteतृष्णा ढूंढती जल बूंद को,
ज्यों खिजा में
झरते फूल पत्ते ढूंढते बहार को
प्रचंड ताप में
सुखती नदी ढूंढती जलधार को, यूं ही पिपासा मे लिपटा मन जोगी संग प्रीत लगा विसंगतियां ढ़ूढता है, अतृप्त, अबूझ ।
और गगरी खाली रह जाती है नदी किनारे जैसे पानी में मीन की प्यास।
बहुत बहुत सुंदर रचना श्वेता, शब्द विन्यास मन मोहक बार बार पढने की तृष्णा जगाता।
सुंदर शब्दों के चयन के साथ बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता।
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
जीवन वैतरणी के तट पर
ReplyDeleteतृप्ति का रीता घट लेकर
मोह की बूँदें भर-भर जोगी
मैं तृष्णा से अकुलाई रे
मिलन के अंतस की प्यास तो अनंत है ... ये तो रीता ही रहेगा सदियों तक ...
मीरा मगन हुयी जब जग में ...
कान्हा प्रीत रीत बन आई ... ये अनत प्रेम की गहराई लिए सुन्दर छंद हैं ... अप्रतिम ...
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- 4 (चर्चा अंक -३५८४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी