Saturday, 22 September 2018

तृष्णा


मदिर प्रीत की चाह लिये
हिय तृष्णा में भरमाई रे
जानूँ न जोगी काहे 
सुध-बुध खोई पगलाई रे

सपनों के चंदन वन महके
चंचल पाखी मधुवन चहके
चख पराग बतरस जोगी
मैं मन ही मन बौराई रे

"पी"आकर्षण माया,भ्रम में
तर्क-वितर्क के उलझे क्रम में
सुन मधुर गीत रूनझुन जोगी
राह ठिठकी मैं चकराई रे

उड़-उड़कर पंख हुये शिथिल 
नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल 
हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
क्षणभर भी जी न पाई रे

जीवन वैतरणी के तट पर
तृप्ति का रीता घट लेकर
मोह की बूँदें भर-भर जोगी
मैं तृष्णा से अकुलाई रे

-श्वेता सिन्हा

31 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

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  2. जी,सादर आभार अभिलाषा जी।
    हृदययल से बेहद शुक्रिया।

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  3. वाहह!!बहुत सुंंदर अभिव्यक्ति श्ववेता जी..

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    1. जी,सादर आभार पम्मी जी।
      हृदयतल से बेहद शुक्रिया।

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  4. मैं तृष्णा से अकुलाई रे

    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.... शानदार

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    1. जी,सादर आभार लोकेश जी।
      हृदययल से बेहद शुक्रिया।

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  5. उड़-उड़कर हुये पंख शिथिल
    नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
    हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
    क्षणभर भी जी न पाई रे
    तृष्णा से अकुलाई रे
    बहुत सुन्दर ...लाजवाब रचना....
    वाह!!!



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    1. सादर आभार सुधा जी।
      हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।
      स्नेह बनाये रखें।

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  6. तृप्ति का ये रीता घट है
    रीता ही रह जायेगा।
    तृष्णा है यह 'आज' तुम्हारी
    बीता 'कल' कहलायेगा!

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    1. जी विश्वमोहन जी,
      सारगर्भित, सुंदर प्रतिक्रिया का आशीष पाकर अभिभूत हैं।
      सादर आभार,हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
      स्नेह बनाये रहे।

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    1. सादर आभार अनुराधा जी।
      हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।

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  8. बेहतरीन रचना जी

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    1. सादर आभार प्रशांत जी।
      बेहद शुक्रिया आपका।

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  9. उड़ - उड़ कर हुए पंख शिथिल
    नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
    बहुत ख़ूब रचना ....

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    1. सादर आभार ऋतु जी।
      हृदयु से बेहद शुक्रिया आपका।

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  10. वाह
    सपनों के चंदन वन महके
    चंचल पाखी मधुवन चहके
    चख पराग बतरस जोगी
    मैं मन ही मन बौराई रे

    भाव विभोर करने वाली कविता।बहुत बहुत बधाई।

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    1. सादर आभार जफ़र जी।
      हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।

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  11. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार दी।
      पाँच लिंक में रचना का सम्मिलित होना सदैव
      हर्षित कर जाता है।

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  12. "पी"आकर्षण माया,भ्रम में
    तर्क-वितर्क के उलझे क्रम में
    सुन मधुर गीत रूनझुन जोगी
    राह ठिठकी मैं चकराई रे!!!!
    प्रिय श्वेता -- लयमें बंधा ये अत्यंत सुंदर जोगी गीत मन्त्र मुग्ध कर गया | एक- एक शब्द मनभावन और बड़ा ही विद्वतापूर्ण है |
    इस रचना को समर्पित कुछ शब्द --------

    सुन जोगन हुए किसके जोगी ?
    ये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी |
    पग जोगी के काल का फेरा -
    एक जगह कहाँ उसका डेरा ?
    कहीं दिन तो कहीं रात बिताये -
    बादल सा उड़ लौट ना आये |
    जिस जोगी संग प्रीत लगायी -
    करी विरह संग अपनी सगाई !!!!!!!!
    इस अनुपम गीत के लिए मेरा प्यार |

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    1. ओहह दी...दी...क्या सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने...वाह्हह.. आपका अनुपम विशेष शुभ आशीष पाकर यह रचना सार्थक हो गयी।
      दी आपकी सराहना सदैव मन प्रफुल्लित कर जाती है।
      सादर आभार दी।
      हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
      स्नेह बनाये रखियेगा सदैव।

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  13. वाह सखी श्वेता बहुत सुन्दर रचना लिखी आपने
    शब्दचयन लाजवाब है और भाव अप्रतीम

    मन की तृष्णा ना बुझे
    मिटे ना मन की आस
    ये कुदरत का खेल है
    परखे जो विश्वास

    बहुत गहरी रचना ...बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिये 👏👏👏

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    1. वाह्हह.. प्रिय नीतू..बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिख डाली आपने...👌👌👌
      आपकी ऐसी सराहना से मन गदगद है।
      सादर आभार प्रिय।
      हृदययल से बेहद शुक्रिया आपका।
      स्नेह बनाये रखिए।

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  14. बहुत ही सुन्दर रचना सखी👌
    खासकर ..

    उड़-उड़कर पंख हुये शिथिल
    नभ अंतहीन इच्छाएँ जटिल
    हर्ष-विषाद गिन-गिन जोगी
    क्षणभर भी जी न पाई रे

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  15. ज्यों मरूस्थल में
    तृष्णा ढूंढती जल बूंद को,
    ज्यों खिजा में
    झरते फूल पत्ते ढूंढते बहार को
    प्रचंड ताप में
    सुखती नदी ढूंढती जलधार को, यूं ही पिपासा मे लिपटा मन जोगी संग प्रीत लगा विसंगतियां ढ़ूढता है, अतृप्त, अबूझ ।
    और गगरी खाली रह जाती है नदी किनारे जैसे पानी में मीन की प्यास।

    बहुत बहुत सुंदर रचना श्वेता, शब्द विन्यास मन मोहक बार बार पढने की तृष्णा जगाता।

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  16. सुंदर शब्दों के चयन के साथ बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता।

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  17. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  18. जीवन वैतरणी के तट पर
    तृप्ति का रीता घट लेकर
    मोह की बूँदें भर-भर जोगी
    मैं तृष्णा से अकुलाई रे
    मिलन के अंतस की प्यास तो अनंत है ... ये तो रीता ही रहेगा सदियों तक ...
    मीरा मगन हुयी जब जग में ...
    कान्हा प्रीत रीत बन आई ... ये अनत प्रेम की गहराई लिए सुन्दर छंद हैं ... अप्रतिम ...

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  19. बहुत ही सुंदर

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  20. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- 4 (चर्चा अंक -३५८४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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