गिरह प्रश्न सुलझा जाओ
प्रियतम तुम ही समझा जाओ
क्यूँ साथ तुम्हारा भाता है?
नित अश्रु अर्ध्य सींचित होकर
प्रेम पुष्प हरियाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
मन से मन की नातेदारी
व्यथा,पीर हिय फुलकारी
उर उपवन के तुम प्रीत गंध
मोहिनी डोर कैसा ये बंध?
पलभर साथ की चाह लिये
सहमा-सहमा मृग आह लिये
छू परछाई अकुलाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
कोने में छत की साँझ ढले
बूँद-बूँद रिस चाँद गले
सपने आँचल रखे गिन-गिन
क्यूँ भाव तरल बरसे रिम झिम?
स्मृति पटल मैं बंद करुँ
आँच विरह की मंद करुँ
बाती-सा हिय जल जाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
जाने कब मौन में आन बसे
हर खुशी है तुझमें जान बसे
प्रीत कुमुदिनी आस लिये
महके क्यूँ करुणा हास लिये?
अंतस रिसती पिचकारी को
मनभावों की किलकारी को
शब्दों में तोला जाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
---श्वेता सिन्हा
सादर आभार अमित जी,त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार अनुराधा जी।
Deleteभावों की सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार अभिलाषा जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर स्वेता जी
ReplyDeleteसादर आभार अनिता जी।
Deleteजी सादर आभार आपका आदरणीय, मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार सर।
Deleteप्रेम की अप्रतिम आभा लिए सुंदर कृति...👌👌👌
ReplyDeleteसादर आभार जी,ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लग रहा।स्नेह बनाये रखें।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार प्रिय नीतू।
Deleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteमन क्यों चाहता है ... ये तो कई बार खुद को भी समझ नहीं आ पता ... पर फिर भी कोशिश रहती है उसे समझने समझाने की ... और ऐसे में ही सुन्दर रचनाएँ जन्म लेती हैं ...
कमल की रचना है ... बधाई ...
सादर आभार नासवा जी।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया आपका।
बहुत सुंदर भाव संयोजन
ReplyDeleteजी सादर आभार रितु जी।
Deleteहृदय से आभार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,श्वेता।
ReplyDeleteजी सादर आभार ज्योति जी।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteमन की गहराइयों में उतरती हुई
बेहद आभार आपका लोकश जी।
Deleteसादर।
कोने में छत की साँझ ढले
ReplyDeleteबूँद-बूँद रिस चाँद गले
सपने आँचल रखे गिन-गिन
क्यूँ भाव तरल बरसे रिम झिम?
बहुत ही सुन्दर... मनभावनी सी..लाजवाब अभिव्यक्ति...
वाह!!!
सादर आभार सुधा जी।
Deleteहृदयतल से स्नेहिल शुक्रिया।
प्रेम की हृदयाभिव्यक्ति हृदय में बस गई. यही तो इस रचना की सफलता है. बधाई
ReplyDeleteसर,रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाना किसी पुरस्कार से कम नहीं..उत्साहवर्धन करने के लिए हृदयतल से अति आभार आपका।
Deleteकृपया अपना आशीष बनाये रखें।
वाह!!श्वेता, बहुत खूबसूरत !! सुंदर भावों से सजी मनमोहक रचना।
ReplyDeleteसादर आभार शुभा दी।
Deleteस्नेहिल शुक्रिया।
वाह्ह्ह! बहुत ही सुन्दर रचना, श्वेता दी।
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों का गुलदस्तां।
आभार भाई आपका।
Deleteकाफी समय के अंतराल पर ब्लॉग पर सक्रिय हुये हैं आप आशा है सब कुशल होगा।
सादर आभार।
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
ReplyDeleteइस प्रश्न का उत्तर मिल जाता तो आधी परेशानी ही ख़त्म हो जाती। मन की व्याकुलता को क्या खूब जुबान दी हैं आपने।
बधाई
सादर आभार जफ़र जी।
Deleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया।
मन की गहराइयों में उतरती हुई... बेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteसादर आभार संजय जी।
Deleteबहुत दिन बाद आपकी प्रतिक्रिया मिली।
बहुत शुक्रिया आपका।
जी अमित जी,ऐसी गुस्ताखी हम नहीं कर सकते।
ReplyDeleteसादर
आभार।
बहुत खूब !
ReplyDeleteसादर आभार सर।
Deleteबेहद शुक्रिया।
बहुत सुंदर लिखा है प्रिय श्वेता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना श्वेता जी
ReplyDeleteक्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
ReplyDeleteयही तो सदियों से अनुत्तरित प्रश्न है।वही क्यों?अनुरागी मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।बहुत प्यारी रचना है।