Monday, 29 October 2018

मन मेरा तुमको चाहता है



गिरह प्रश्न सुलझा जाओ
प्रियतम तुम ही समझा जाओ
क्यूँ साथ तुम्हारा भाता है?
 नित अश्रु अर्ध्य सींचित होकर
प्रेम पुष्प हरियाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?

मन से मन की नातेदारी
व्यथा,पीर हिय फुलकारी
उर उपवन के तुम प्रीत गंध
मोहिनी डोर कैसा ये बंध?
पलभर साथ की चाह लिये
सहमा-सहमा मृग आह लिये
छू परछाई अकुलाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?

कोने में छत की साँझ ढले
बूँद-बूँद रिस चाँद गले
सपने आँचल रखे गिन-गिन
क्यूँ भाव तरल बरसे रिम झिम?
स्मृति पटल मैं बंद करुँ
आँच विरह की मंद करुँ
बाती-सा हिय जल जाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?

जाने कब मौन में आन बसे
हर खुशी है तुझमें जान बसे
प्रीत कुमुदिनी आस लिये
महके क्यूँ करुणा हास लिये?
अंतस रिसती पिचकारी को
मनभावों की किलकारी को
शब्दों में तोला जाता है
क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?

---श्वेता सिन्हा





40 comments:

  1. सादर आभार अमित जी,त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ।

    ReplyDelete
  2. सुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अनुराधा जी।

      Delete
  3. भावों की सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अभिलाषा जी।

      Delete
  4. बहुत ही सुन्दर स्वेता जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अनिता जी।

      Delete
  5. जी सादर आभार आपका आदरणीय, मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभारी हूँ।

    ReplyDelete
  6. प्रेम की अप्रतिम आभा लिए सुंदर कृति...👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार जी,ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लग रहा।स्नेह बनाये रखें।

      Delete
  7. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार प्रिय नीतू।

      Delete
  8. बहुत सुन्दर ...
    मन क्यों चाहता है ... ये तो कई बार खुद को भी समझ नहीं आ पता ... पर फिर भी कोशिश रहती है उसे समझने समझाने की ... और ऐसे में ही सुन्दर रचनाएँ जन्म लेती हैं ...
    कमल की रचना है ... बधाई ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार नासवा जी।
      हृदयतल से बहुत शुक्रिया आपका।

      Delete
  9. बहुत सुंदर भाव संयोजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार रितु जी।
      हृदय से आभार।

      Delete
  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,श्वेता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार ज्योति जी।

      Delete
  11. बेहद खूबसूरत रचना
    मन की गहराइयों में उतरती हुई

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद आभार आपका लोकश जी।
      सादर।

      Delete
  12. कोने में छत की साँझ ढले
    बूँद-बूँद रिस चाँद गले
    सपने आँचल रखे गिन-गिन
    क्यूँ भाव तरल बरसे रिम झिम?
    बहुत ही सुन्दर... मनभावनी सी..लाजवाब अभिव्यक्ति...
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार सुधा जी।
      हृदयतल से स्नेहिल शुक्रिया।

      Delete
  13. प्रेम की हृदयाभिव्यक्ति हृदय में बस गई. यही तो इस रचना की सफलता है. बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर,रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाना किसी पुरस्कार से कम नहीं..उत्साहवर्धन करने के लिए हृदयतल से अति आभार आपका।
      कृपया अपना आशीष बनाये रखें।

      Delete
  14. वाह!!श्वेता, बहुत खूबसूरत !! सुंदर भावों से सजी मनमोहक रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार शुभा दी।
      स्नेहिल शुक्रिया।

      Delete
  15. वाह्ह्ह! बहुत ही सुन्दर रचना, श्वेता दी।
    सुन्दर शब्दों का गुलदस्तां।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार भाई आपका।
      काफी समय के अंतराल पर ब्लॉग पर सक्रिय हुये हैं आप आशा है सब कुशल होगा।
      सादर आभार।

      Delete
  16. क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?

    इस प्रश्न का उत्तर मिल जाता तो आधी परेशानी ही ख़त्म हो जाती। मन की व्याकुलता को क्या खूब जुबान दी हैं आपने।
    बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार जफ़र जी।
      हृदयतल से बेहद शुक्रिया।

      Delete
  17. मन की गहराइयों में उतरती हुई... बेहतरीन रचना श्वेता जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार संजय जी।
      बहुत दिन बाद आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      बहुत शुक्रिया आपका।

      Delete
  18. जी अमित जी,ऐसी गुस्ताखी हम नहीं कर सकते।
    सादर
    आभार।

    ReplyDelete
  19. Replies
    1. सादर आभार सर।
      बेहद शुक्रिया।

      Delete
  20. बहुत सुंदर लिखा है प्रिय श्वेता

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर रचना श्वेता जी

    ReplyDelete
  22. क्यूँ मन तुमको ही चाहता है?
    यही तो सदियों से अनुत्तरित प्रश्न है।वही क्यों?अनुरागी मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।बहुत प्यारी रचना है।

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...