Saturday, 3 November 2018

माँ हूँ मैं


गर्व सृजन का पाया
बीज प्रेम अंकुराया
कर अस्तित्व अनुभूति 
सुरभित मन मुस्काया 

स्पंदन स्नेहिल प्यारा
प्रथम स्पर्श तुम्हारा
माँ हूँ मैं,बिटिया मेरी
तूने यह बोध कराया

रोम-रोम ममत्व कस्तूरी 
जीवन की मेरी तुम धुरी
चिड़िया आँगन किलकी
ऋतु मधुमास घर आया

तुतलाती प्रश्नों की लड़ी
मधु पराग फूलों की झड़ी 
"माँ" कहकर बिटिया मेरी
माँ हूँ यह बोध कराया

नन्हें पाँव की थाप से डोले
रूनझुन भू की वीणा बोले
थम समीर छवि देखे तेरी
ठिठका इंद्रधनुष भरमाया

जीवन पथ पर थामे हाथ
भरती डग विश्वास के साथ
शक्ति स्वरुपा कहकर बिटिया
"माँ" का सम्मान बढ़ाया

आशीष को मन्नत माने तू
सानिध्य स्वर्ग सा जाने तू
उज्जल,निर्मल शुभ्र लगूँ
मुझे गंगा पावन बतलाया

जगबंधन सृष्टि क्या जाने तू?
आँचल भर दुनिया माने तू
स्त्रीत्व पूर्ण तुझसे बिटिया
माँ हूँ मैं, तूने ही बोध कराया

--श्वेता सिन्हा

sweta sinha जी बधाई हो!,


आपका लेख - (माँ हूँ मैं ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

19 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना ममतामयी भावों से स्पंदित

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अभिलाषा जी।
      हृदय से आभार आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए।

      Delete
  2. आपकी ये बेहतरीन रचना कल दिनांक 4नवम्बर 2018 को पाँच लिंको का आनन्द में साझा की जाएगी...धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार दी:)
      पाँच लिंक में रचना शामिल होना हमेशा आनंदित करता है।
      आपके स्नेह के लिए कोई शब्द नहीं है।
      आशीष बनाये रखे दी।
      सादर।

      Delete
  3. वाह स्वेता जी
    माँ को यू तो परिभाषित करना नामुमकिन हैं किंतु अपने जिन शब्दों में भावनाओ को व्यक्त किया हैं वो स्वमं में अदभुत हैं-

    नन्हें पाँव की थाप से डोले
    रूनझुन भू की वीणा बोले
    थम समीर छवि देखे तेरी
    ठिठका इंद्रधनुष भरमाया

    लाजवाब

    ReplyDelete
  4. बहुत प्यारी कविता

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  7. बहुत ही उम्दा...बहुत ही सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  8. श्वेता दी, माँ की ममता और महानता का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने।

    ReplyDelete
  9. वाह वाह अप्रतिम श्वेता अल्फाज़ों के परे!
    एक कली चटकी खुशबु उठी फिजाओं में
    बोल उठी लचक के टहनी नाजुक मां हूं मैं।

    ReplyDelete
  10. माँ होने का बोध कराया साथ ही जीने के वजह दी
    जिन्दगी में तब से उम्मीदों की बगिया महकी..
    प्यारी बिटिया का एहसान है माँ पर...माँ की ममता को जिसने जगाया...मेरे मन के भावों को खूबसूरत काव्य मिला आपकी लाजवाब लेखनी से...साधुवाद श्वेता जी...बहुत ही शानदार भावाभिव्यक्ति...
    वाह!!!

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌

    ReplyDelete
  12. धन्य होती हैं माए जो रचती हैं सृष्टि और फिर वो सृष्टि स्वयं रचियता को उसके अंतस, उसके धातु होने का अहसास करती है ... बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ...

    ReplyDelete
  13. वाह!!श्वेता ,बहुत सुंदरभावों से सजी रचना ।

    ReplyDelete
  14. बहुत उम्दा सृजन
    माँ ही प्रकृति है, माँ ही धरा है
    प्रणाम

    ReplyDelete
  15. दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!

    ReplyDelete
  16. जगबंधन सृष्टि क्या जाने तू?
    आँचल भर दुनिया माने तू
    स्त्रीत्व पूर्ण तुझसे बिटिया
    माँ हूँ मैं, तूने ही बोध कराया.... नमन आपके उदात्त भावों को!

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...