Tuesday, 25 December 2018

धर्म


सोचती हूँ
कौन सा धर्म 
विचारों की संकीर्णता
की बातें सिखलाता है?

सभ्यता के
विकास के साथ
मानसिकता का स्तर
शर्मसार करता जाता है।

धर्मनिरपेक्षता 
शाब्दिक स्वप्न मात्र
नियम -कायदों के पृष्ठों में
दबकर कराहता है।

धर्म पताका
धर्म के नाम का
धर्म का ठेकेदार
तिरंगें से ऊँचा फहराता है।

शांति सौहार्द्र की 
डींगें हाँकने वाला
साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
अमन-चैन ढुलवाता है।

अभिमान में स्व के
रौंदकर इंसानियत
निर्मम अट्टहास कर
धर्मवीर तमगा पा इठलाता है।

जीवन-चक्र
समझ न नादां
कर्मों का खाता,बाद तेरे
जग में रह-रह के पलटा जाता है।

मज़हबों के ढेर से
इंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में 
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।

-श्वेता सिन्हा





49 comments:

  1. मज़हबों के ढेर से
    इंसानों को अलग कर देखो
    धर्म की हर एक किताब में
    इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है . ...बहुत सुन्दर रचना श्वेता जी, इस आवज़ को यूँ ही बुलंद रखना
    सादर

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    1. सादर आभार अनिता जी...बेहद शुक्रिया आपका।

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  2. Tuesday, 25 December 2018
    धर्म


    सोचती हूँ
    कौन सा धर्म
    विचारों की संकीर्णता
    की बातें सिखलाता है?

    सभ्यता के
    विकास के साथ
    मानसिकता का स्तर
    शर्मसार करता जाता है।

    कटु सत्य, बेहतरीन रचना

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    1. बेहद आभारी हूँ अभिलाषा जी...बेहद शुक्रिया आपका।

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  3. Replies
    1. सादर आभार सर...बेहद शुक्रिया।

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  4. शांति सौहार्द्र की
    डींगें हाँकने वाला
    साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
    अमन-चैन ढुलवाता है।
    बेहतरीन पंक्तियाँ
    सादर

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    1. सादर आभार दी आपके शुभाशीष का..बेहद शुक्रिया आपका।

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  5. धर्मनिरपेक्षता
    शाब्दिक स्वप्न मात्र
    नियम -कायदों के पृष्ठों में
    दबकर कराहता है।..... बहुत सही. जन मानस को झकझोरती पंक्तियाँ!!! बहुत बहुत बधाई और आभार इस सोद्देश्य रचना का!!!

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    1. आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन निः संदेह मेरी लेखनी के लिए संजीवनी सरीखी है।
      सादर आभार..बेहद शुक्रिया आपका।

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  6. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 27 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1259 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. बेहद आभारी हूँ रवींद्र जी..बहुत शुक्रिया आपका।

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  7. अद्भुत, शानदार और स्तब्ध करता सशक्त लेखन ! बधाई एवं शुभकामनायें

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    1. जी सादर आभार संजय जी..आपकी सुंदर सराहना के लिए बहुत शुक्रिया।

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  8. Waah, Waah. Good thoughts. Definition of Religion is realistic. Appreciated...Now i realise the Wait of HINDI. Waah Waah.....

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    1. बहुत शुक्रिया चंद्रा...क्या फ़र्क पड़ता सराहना या उत्साहवर्धन किस भाषा में किया जा रहा है तुम्हारी हर प्रतिक्रिया के भाव मुझ तक पहुँच रहे.. बहुत बेशकीमती है।

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  9. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3198 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    1. जी बेहद आभारी हूँ सर..बहुत शुक्रिया आपका।

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  10. वाह बहुत खूब,धर्म की हर एक किताब में इंसानियत का पाठ पड़ा या जाता है ।

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ रितु जी...बेहद शुक्रिया।

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  11. अभिमान में स्व के
    रौंदकर इंसानियत
    निर्मम अट्टहास कर
    धर्मवीर तमगा पा इठलाता है।
    सटीक प्रस्तुति...
    सही कहा प्रत्येक धर्म में इन्सानियत का पाठ पढाया जाता है...
    बेहतरीन ....लाजवाब...।

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ सुधा जी...बेहद.शुक्रिया आपका।

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  12. पैदा होते ही हम पर धर्म और जाति का जो ठप्पा लग जाता है उससे हम खुद को अलग नहीं कर पाते....और ये भी भूल जाते हैं कि हम मनुष्य हैं। अत्यंत सार्थक शब्दों में उचित संदेश।

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    1. सादर आभार दी...बेहद शुक्रिया सस्नेह।
      शुभाशीष बनाये रखिये।

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  13. मज़हबों के ढेर से
    इंसानों को अलग कर देखो
    धर्म की हर एक किताब में
    इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
    बहुत सही कहा,श्वेता दी। बहुत सुंदर।

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    1. सादर आभार आदरणीय ज्योति जी..बहुत शुक्रिया आपका।

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  14. धर्म यानि जो धारण करने योग्य हो क्या धारण किया जाय सदाचार, सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव, संयम आदि
    धर्म इतना मूल्यवान है...,

    कि उसकी जरूरत सिर्फ किसी
    समय विशेष के लिए ही नहीं होती,

    अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।
    बस सही धारण किया जाय।

    सार्थक और उच्च भावों से सुसज्जित सुंदर विचारों वाली अप्रतिम रचना।

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    1. वाहहह दी..कितनी खूबसूरती से धर्म की विवेचना
      की आपने..आपकी विशेष प्रतिक्रिया मेरी रचना को नया अर्थ प्रदान करती है दी..रचना को सार्थकता प्रदान करती है..बहुत आभारी हूँ दी..
      दिल से बहुत शुक्रिया आपका।

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  15. मज़हबों के ढेर से,इंसानों को अलग कर देखो
    धर्म की हर एक किताब में ,इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
    ये बात मज़हब के ठेकेदारों के समझ में कहा आती है जो मज़हब के नाम पर हजारो बेगुनाहो की जान लेने से भी गुरेज नहीं करते ,बहुत अच्छी और यथार्थ रचना श्वेता जी

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    1. बेहद आभारी हूँ..कामिनी जी..बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

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  16. मज़हबों के ढेर से
    इंसानों को अलग कर देखो
    धर्म की हर एक किताब में
    इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है....यथार्थ
    बेहतरीन रचना जी

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    1. जी बेहद आभारी हूँ...बहुत शुक्रिया आपका।

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  17. सच है इंसानियत का पाठ हर धर्म मैं है ... पर आज धर्म से ज्यादा उसका आडम्बर है ... प्रतिस्पर्धा है जिसमें कोई पीछे नहीं होना चाहता ...

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    1. जी सही कहा आपने नासवा जी...बेहद शुक्रिया आपका आभारी हूँ हृदयतल से।

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  18. बहुत बढ़िया, दी! धर्म का चोला पहनकर कई (सब) धर्म का दुरूपयोग करते हैं।
    आँखें इतनी बंद हो गई है कि अब कौन सा धर्म इसका सही मार्गदर्शन कर इन आँखों को खोलेगा...कहना बेहद मुश्किल है। क्योकि अब धर्म को धर्म नहीं चला रहा...इसका बस एक ही कारण है, सभी धर्म के बहुत सारे ठेकेदार हो गए हैं।

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    1. हाँ भाई सही कहा सभी धर्म की ठेकेदारी चाहते है ताकि अपने सहूलियत के हिसाब से अपनी दुकान चला सके।
      सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ बहुत शुक्रिया आपका।

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  19. जीवन-चक्र
    समझ न नादां
    कर्मों का खाता,बाद तेरे
    जग में रह-रह के पलटा जाता है


    वाह बहुत सुंदर।
    काश के ये ख्यालात हम सबके हो जाये जिससे अमन और चैन मेरे वतन के कदम चूमे।
    सादर

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    1. जी डॉ. साहब यकीन मानिये आधा से ज्यादा आबादी ऐसा ही सोचती है पर शायद सोचने से कुछ नहीं होता न।
      बहुत आभारी हूँ आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए..सादर आभार।

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  20. श्वेता दी,धर्म की हर एक किताब में इंसानियत का ही पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन ये इंसान हैं कि इंसानियत छोड़ कर बाकि सब कुछ पढ़ लेता हैं। बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी बहुत आभारी हूँ आदरणीया ज्योति जी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए...बहुत आभार।

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  21. अमन पसंद नागरिक की कराहट है ये कविता. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. बहुत आभारी हूँ राकेश जी..सादर आभार।

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  22. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. जी सादर आभार...बहुत शुक्रिया आपका।

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  23. धर्म और धार्मिक तत्व दो अलग अलग बातें हैं श्वेता जी।
    धर्म जैसा कि आपने बताया हमें इंसानियत और प्रेम भाव सिखाता है वहीं धार्मिक तत्व वैर भाव, एक धर्म दूसरे से अलग कैसे है या दंगे फसाद करवाता है। धार्मिक तत्व के प्रभाव में आकर कोई कट्टर बन सकता है जैसे कट्टर हिन्दू या कट्टर मुस्लिम वगैरह वगैरह..लेकिन धर्म के प्रभाव में आने पर आप निर्मल व स्वच्छ मानसिकता को प्राप्त होते हो।
    धार्मिक शिक्षा, धार्मिक संगठन, मंदिर-मस्जिद, धार्मिक प्रतीक ये सब धार्मिक तत्व है जिनको धर्म से कोई लेना देना नहीं होता।

    लिखते रहें। आपको पढ़ कर अच्छा लगता है।

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    1. विस्तृत सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभारी हूँ रोहित जी..बेहद शुक्रिया आपका।
      कृपया आते रहें आपकी प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ा जाती है सदैव।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...