सोचती हूँ
कौन सा धर्म
विचारों की संकीर्णता
की बातें सिखलाता है?
सभ्यता के
विकास के साथ
मानसिकता का स्तर
शर्मसार करता जाता है।
धर्मनिरपेक्षता
शाब्दिक स्वप्न मात्र
नियम -कायदों के पृष्ठों में
दबकर कराहता है।
धर्म पताका
धर्म के नाम का
धर्म का ठेकेदार
तिरंगें से ऊँचा फहराता है।
शांति सौहार्द्र की
डींगें हाँकने वाला
साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
अमन-चैन ढुलवाता है।
अभिमान में स्व के
रौंदकर इंसानियत
निर्मम अट्टहास कर
धर्मवीर तमगा पा इठलाता है।
जीवन-चक्र
समझ न नादां
कर्मों का खाता,बाद तेरे
जग में रह-रह के पलटा जाता है।
मज़हबों के ढेर से
इंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
-श्वेता सिन्हा
मज़हबों के ढेर से
ReplyDeleteइंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है . ...बहुत सुन्दर रचना श्वेता जी, इस आवज़ को यूँ ही बुलंद रखना
सादर
सादर आभार अनिता जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Delete
ReplyDeleteTuesday, 25 December 2018
धर्म
सोचती हूँ
कौन सा धर्म
विचारों की संकीर्णता
की बातें सिखलाता है?
सभ्यता के
विकास के साथ
मानसिकता का स्तर
शर्मसार करता जाता है।
कटु सत्य, बेहतरीन रचना
बेहद आभारी हूँ अभिलाषा जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteसादर आभार सर...बेहद शुक्रिया।
Deleteशांति सौहार्द्र की
ReplyDeleteडींगें हाँकने वाला
साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
अमन-चैन ढुलवाता है।
बेहतरीन पंक्तियाँ
सादर
सादर आभार दी आपके शुभाशीष का..बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteधर्मनिरपेक्षता
ReplyDeleteशाब्दिक स्वप्न मात्र
नियम -कायदों के पृष्ठों में
दबकर कराहता है।..... बहुत सही. जन मानस को झकझोरती पंक्तियाँ!!! बहुत बहुत बधाई और आभार इस सोद्देश्य रचना का!!!
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन निः संदेह मेरी लेखनी के लिए संजीवनी सरीखी है।
Deleteसादर आभार..बेहद शुक्रिया आपका।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 27 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1259 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बेहद आभारी हूँ रवींद्र जी..बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteअद्भुत, शानदार और स्तब्ध करता सशक्त लेखन ! बधाई एवं शुभकामनायें
ReplyDeleteजी सादर आभार संजय जी..आपकी सुंदर सराहना के लिए बहुत शुक्रिया।
DeleteWaah, Waah. Good thoughts. Definition of Religion is realistic. Appreciated...Now i realise the Wait of HINDI. Waah Waah.....
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया चंद्रा...क्या फ़र्क पड़ता सराहना या उत्साहवर्धन किस भाषा में किया जा रहा है तुम्हारी हर प्रतिक्रिया के भाव मुझ तक पहुँच रहे.. बहुत बेशकीमती है।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3198 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
जी बेहद आभारी हूँ सर..बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteवाह बहुत खूब,धर्म की हर एक किताब में इंसानियत का पाठ पड़ा या जाता है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ रितु जी...बेहद शुक्रिया।
Deleteअभिमान में स्व के
ReplyDeleteरौंदकर इंसानियत
निर्मम अट्टहास कर
धर्मवीर तमगा पा इठलाता है।
सटीक प्रस्तुति...
सही कहा प्रत्येक धर्म में इन्सानियत का पाठ पढाया जाता है...
बेहतरीन ....लाजवाब...।
बहुत-बहुत आभारी हूँ सुधा जी...बेहद.शुक्रिया आपका।
Deleteपैदा होते ही हम पर धर्म और जाति का जो ठप्पा लग जाता है उससे हम खुद को अलग नहीं कर पाते....और ये भी भूल जाते हैं कि हम मनुष्य हैं। अत्यंत सार्थक शब्दों में उचित संदेश।
ReplyDeleteसादर आभार दी...बेहद शुक्रिया सस्नेह।
Deleteशुभाशीष बनाये रखिये।
ReplyDeleteमज़हबों के ढेर से
इंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
बहुत सही कहा,श्वेता दी। बहुत सुंदर।
सादर आभार आदरणीय ज्योति जी..बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteधर्म यानि जो धारण करने योग्य हो क्या धारण किया जाय सदाचार, सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव, संयम आदि
ReplyDeleteधर्म इतना मूल्यवान है...,
कि उसकी जरूरत सिर्फ किसी
समय विशेष के लिए ही नहीं होती,
अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।
बस सही धारण किया जाय।
सार्थक और उच्च भावों से सुसज्जित सुंदर विचारों वाली अप्रतिम रचना।
वाहहह दी..कितनी खूबसूरती से धर्म की विवेचना
Deleteकी आपने..आपकी विशेष प्रतिक्रिया मेरी रचना को नया अर्थ प्रदान करती है दी..रचना को सार्थकता प्रदान करती है..बहुत आभारी हूँ दी..
दिल से बहुत शुक्रिया आपका।
मज़हबों के ढेर से,इंसानों को अलग कर देखो
ReplyDeleteधर्म की हर एक किताब में ,इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
ये बात मज़हब के ठेकेदारों के समझ में कहा आती है जो मज़हब के नाम पर हजारो बेगुनाहो की जान लेने से भी गुरेज नहीं करते ,बहुत अच्छी और यथार्थ रचना श्वेता जी
बेहद आभारी हूँ..कामिनी जी..बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteमज़हबों के ढेर से
ReplyDeleteइंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है....यथार्थ
बेहतरीन रचना जी
जी बेहद आभारी हूँ...बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteसच है इंसानियत का पाठ हर धर्म मैं है ... पर आज धर्म से ज्यादा उसका आडम्बर है ... प्रतिस्पर्धा है जिसमें कोई पीछे नहीं होना चाहता ...
ReplyDeleteजी सही कहा आपने नासवा जी...बेहद शुक्रिया आपका आभारी हूँ हृदयतल से।
Deleteबहुत बढ़िया, दी! धर्म का चोला पहनकर कई (सब) धर्म का दुरूपयोग करते हैं।
ReplyDeleteआँखें इतनी बंद हो गई है कि अब कौन सा धर्म इसका सही मार्गदर्शन कर इन आँखों को खोलेगा...कहना बेहद मुश्किल है। क्योकि अब धर्म को धर्म नहीं चला रहा...इसका बस एक ही कारण है, सभी धर्म के बहुत सारे ठेकेदार हो गए हैं।
हाँ भाई सही कहा सभी धर्म की ठेकेदारी चाहते है ताकि अपने सहूलियत के हिसाब से अपनी दुकान चला सके।
Deleteसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ बहुत शुक्रिया आपका।
Thanks for sharing such a wonderful lines best online book publisher in India
ReplyDeleteThanku so much.
Deleteजीवन-चक्र
ReplyDeleteसमझ न नादां
कर्मों का खाता,बाद तेरे
जग में रह-रह के पलटा जाता है
वाह बहुत सुंदर।
काश के ये ख्यालात हम सबके हो जाये जिससे अमन और चैन मेरे वतन के कदम चूमे।
सादर
जी डॉ. साहब यकीन मानिये आधा से ज्यादा आबादी ऐसा ही सोचती है पर शायद सोचने से कुछ नहीं होता न।
Deleteबहुत आभारी हूँ आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए..सादर आभार।
श्वेता दी,धर्म की हर एक किताब में इंसानियत का ही पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन ये इंसान हैं कि इंसानियत छोड़ कर बाकि सब कुछ पढ़ लेता हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी बहुत आभारी हूँ आदरणीया ज्योति जी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए...बहुत आभार।
Deleteअमन पसंद नागरिक की कराहट है ये कविता. सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ राकेश जी..सादर आभार।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी सादर आभार...बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteधर्म और धार्मिक तत्व दो अलग अलग बातें हैं श्वेता जी।
ReplyDeleteधर्म जैसा कि आपने बताया हमें इंसानियत और प्रेम भाव सिखाता है वहीं धार्मिक तत्व वैर भाव, एक धर्म दूसरे से अलग कैसे है या दंगे फसाद करवाता है। धार्मिक तत्व के प्रभाव में आकर कोई कट्टर बन सकता है जैसे कट्टर हिन्दू या कट्टर मुस्लिम वगैरह वगैरह..लेकिन धर्म के प्रभाव में आने पर आप निर्मल व स्वच्छ मानसिकता को प्राप्त होते हो।
धार्मिक शिक्षा, धार्मिक संगठन, मंदिर-मस्जिद, धार्मिक प्रतीक ये सब धार्मिक तत्व है जिनको धर्म से कोई लेना देना नहीं होता।
लिखते रहें। आपको पढ़ कर अच्छा लगता है।
विस्तृत सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभारी हूँ रोहित जी..बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteकृपया आते रहें आपकी प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ा जाती है सदैव।
सच है इंसानियत का पाठ हर धर्म मैं है
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