तन्हाई की आँच में
टुकड़ों में गल रहा है चाँद,
दामन से आसमाँ के
देखो! पिघल रहा है चाँद।
छत की मुंडेरों पर
झुकी हैंं पलकें सितारों की,
फुनगी पर नीम की
शमा-सा जल रहा है चाँद।
शायद कोई ख़्वाब होगा
तसव्वुर में रुमानी-सा,
चूम कर पेशानी अब्र की
करवट बदल रहा है चाँद।
हवा की बाँसुरी पर
थिरकते चमन के फूलों पर,
छिड़क इत्र चाँदनी की
शोख़ मचल रहा है चाँद।
शबनमी बूँद भरी
रेशमी पैरहन में लिपटा,
आसमाँ के बदन पर
ख़्वाब मल रहा है चाँद।
-श्वेता सिन्हा
वाह।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर...बेहद.शुक्रिया आपकी त्वरित प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी।
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया विश्वमोहन जी...हृदयतल से अति आभार।
Deleteशबनमी बूँद भरी
ReplyDeleteरेशमी पैरहन में लिपटा
आसमाँ के बदन पे
ख़्वाब मल रहा है चाँद
बेहतरीन..
सादर...
जी सादर आभार....बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteछत की मुंडेरों पे
ReplyDeleteझुकी है पलकें सितारों की
फुनगी पे नीम की
शम्मा-सा जल रहा है चाँद
बहुत ही लाजवाब...
वाह!!!
सुधा जी,सादर आभार...बेहद शुक्रिया आपका।
DeleteSo nice, beautiful words and thoughts. We proud to be from KANDRA. Keep on writing........
ReplyDeleteThanku so much chandra.
DeleteI really proud to be from kandra.Thankx a lot for all ur wishes and support.
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ रितु जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार सर..आपके सहयोग के लिए हृदय से बहुत शुक्रिया।
DeleteWaah 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार नीतू...सस्नेह शुक्रिया।
Deleteवाहः
ReplyDeleteलाजवाब
बहुत ही खूबसूरत
बहुत बहुत आभार लोकेश जी। बेहद.शुक्रिया आपका।
Deleteबेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ दीपा जी..बहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteवाह ! वाह !! और सिर्फ वाह !!!
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरत रचना है।
आभारी हूँ दी...आपकी स्नेहमयी प्रतिक्रिया के लिए...बेहद शुक्रिया।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना चांद में चार चांद लग गए
ReplyDeleteसादर आभार अभिलाषा जी...बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteकमनीय कामिनी
ReplyDeleteघुंघट से मुख खोले
ज्यों होले होले
बदरी से बाहर
आ रहा है चांद।
बहुत सुंदर श्वेता चांद पर शबाब है या लेखनी में खुमार बस बेमिसाल है।
आपकी बहुत सुंदर पंक्तियाँ दी..वाहहह👌
Deleteउत्साहभरी प्रतिक्रिया के लिए बेहद आभारी हूँ दी।
बहुत शुक्रिया आपका।
बहुत सुंदर. भाषाई शब्द चयन व लय समेत. बधाई.
ReplyDeleteजी सर,बहुत दिनों बाद आपकी प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई।
Deleteआशा है अब आप स्वस्थ्य होंगे।
सादर आभार सर...बेहद शुक्रिया आपका।
चाँद हमारे जीवन में रचा-बसा है। कल्पनालोक में प्रकृति की ख़ूबसूरत छटा और शब्द-व्यंजना हृदयस्पर्शी बन पड़ी है। प्रभावशाली नज़्म। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteरवींद्र जी..आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया सदैव मन आहृलादित कर जाती है।
Deleteसादर आभार...बेहद शुक्रिया आपका।
लाजवाब ... बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteजी सादर आभार सुधा दी...ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत अच्छा लग रहा..। बेहद.शुक्रिया आपका।
Deleteवाह !!बहुत ख़ूब श्वेता जी 👌
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ अनिता जी...सस्नेह शुक्रिया आपका।
Deleteलाजबाब!!!!!!!!! स्वेता जी
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है कामिनी जी...बेहद आभारी हूँ..शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ अनुराधा जी..सस्नेह शुक्रिया आपका।
Deleteशबनमी बूँद भरी
ReplyDeleteरेशमी पैरहन में लिपटा
आसमाँ के बदन पे
ख़्वाब मल रहा है चाँद.... वाह आपने चाँद को और भी ख़ूबसूरत बना दिया श्वेता जी
बेहद आभारी हूँ वंदना जी..बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteगज़ब है हर शेर ...
ReplyDeleteचाँद की अनोखी कल्पना से भरा है काव्य जगत पर ये छंद अपनी अलग पहचान रख रहे हैं ... लाजवाब ...
जी सादर आभार नासवा जी...बहुत-बहुत शुक्रिया आपका...आपके अनुपम आशीष का बहुत आभार।
Deleteखूबसूरत रचना खूबसूरत लेखन....बेहतरीन प्रवाह
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ संजय जी...बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।
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