तन्हाई की आँच में
टुकड़ों में गल रहा है चाँद,
दामन से आसमाँ के
देखो! पिघल रहा है चाँद।
छत की मुंडेरों पर
झुकी हैंं पलकें सितारों की,
फुनगी पर नीम की
शमा-सा जल रहा है चाँद।
शायद कोई ख़्वाब होगा
तसव्वुर में रुमानी-सा,
चूम कर पेशानी अब्र की
करवट बदल रहा है चाँद।
हवा की बाँसुरी पर
थिरकते चमन के फूलों पर,
छिड़क इत्र चाँदनी की
शोख़ मचल रहा है चाँद।
शबनमी बूँद भरी
रेशमी पैरहन में लिपटा,
आसमाँ के बदन पर
ख़्वाब मल रहा है चाँद।
-श्वेता सिन्हा