दिसम्बर
(१)
गुनगुनी किरणों का
बिछाकर जाल
उतार कुहरीले रजत
धुँध के पाश
चम्पई पुष्पों की ओढ़ चुनर
दिसम्बर मुस्कुराया
शीत बयार
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसम्बर मुस्कुराया
चाँदनी शबनमी
निशा आँचल में झरती
बर्फीला चाँद पूछे
रेशमी प्रीत की कहानी
मोरपंखी एहसास जगाकर
दिसम्बर मुस्कुराया
आग की तपिश में
मिठास घुली भाने लगी
गुड़ की चासनी में पगकर
ठंड गुलाब -सी मदमाने लगी
लिहाफ़ में सुगबुगाकर हौले से
दिसम्बर मुस्कुराया
(२)
भोर धुँँध में
लपेटकर फटी चादर
ठंड़ी हवा के
कंटीले झोंकों से लड़कर
थरथराये पैरों को
पैडल पर जमाता
मंज़िल तक पहुँचाते
पेट की आग बुझाने को लाचार
पथराई आँखों में
जमती सर्दियाँ देखकर
सोचती हूँ मन ही मन
दिसम्बर तुम यूँ न क़हर बरपाया करो
वो भी अपनी माँ की
आँखों का तारा होगा
अपने पिता का राजदुलारा
फटे स्वेटर में कँपकँपाते हुए
बर्फीली हवाओं की चुभन
करता नज़रअंदाज़
काँच के गिलासों में
डालकर खौलती चाय
उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर तुम यूँ न क़हर बरपाया करो
बेदर्द रात के
क़हर से सहमे थरथराते
सीले,नम चीथड़ों के
ओढ़न-बिछावन में
करवट बदलते
सूरज का इंतज़ार करते
बेरहम चाँद की पहरेदारी में
बुझते अलाव की गरमाहट
भरकर स्मृतियों में
काटते रात के पहर
खाँसते बेदम बेबसों को
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर यूँ न क़हर बरपाया करो
-श्वेता सिन्हा
sweta sinha जी बधाई हो!,
आपका लेख - (दिसम्बर) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
तकनीकी कारणों से कुछ बहुमूल्य प्रतिक्रिया नष्ट हो गयी है...सभी से करबद्ध क्षमा चाहते हैं।
ReplyDeleteकृपया अपना स्नेह बनाये रखें।
फिर से आ जाएगी..
ReplyDeleteफिक्र न करें...
बेहतरीन रचनाओं की कद्र सालों साल होती है
अभी दिसम्बर बीता नही है..
सादर..
वाह
ReplyDeleteवाह!!!!श्वेता ,नमन आपकी कलम को🙏
ReplyDeleteवाह ! दो विरोधाभासी रूप दिसंबर के.... अत्यंत गहन सोच को दर्शाती रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं
ReplyDeleteप्रिय श्वेता -- दिसम्बर के सुंदर और वीभत्स दोनों रूपों को बखूबी परिभाषित करती ये सार्थक रचना है | प्रकृति के सौन्दर्य के अलावा दिसम्बर साधन हीनों के लिए कयामत से कम नहीं | दयनीयता से घिरे और विपन्नता से जूझ रहे करुण पात्र कैसे इस मौसम का सामना करते होंगे बहुत ही मार्मिकता के साथ लिखा आपने | सस्नेह शुभकामनायें और प्यार |
ReplyDeleteदिसंबर के दोनों रूपों को आपने दर्शा दिया .... ये अच्छा है या बुरा अपनी -अपनी परिस्थिति पर निर्भर करता है .... सुंदर रचना
ReplyDeleteदिसंबर के अनेक रूप बाखूबी पप्राकृति से मांग के जैसे इन शब्दों एमिन लिख दिए ... प्रकृति वैसे भी अपने नए रंग ले के आती है हर पल उन्हें कैद करना होता है ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteVery good and realistic composition . Please write Book of your compositions. All the best/
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