एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं
ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो जाते हैं
तुम होते हो तो हर मंज़र हसीं होता है
जाते ही तुम्हारे रंग सारे फीके हो जाते हैं
उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
जाने किसका ख़्याल आबाद है ज़हन में
क्यूँ हम ख़ुद से भी अजनबी हो जाते हैं
बीत चुका है मौसम इश्क़ का फिर भी
याद के बादल क़ब्र पे आकर रो जाते हैं
वक़्त का आईना मेरे सवाल पर चुप है
दिल क्यों नहीं चेहरों-से बेपर्दा हो जाते हैं
-श्वेता सिन्हा
प्रिय श्वेता बहन बहुत ही सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteइस रचना के लिए मेरी तरफ़ से ढेर सारी शुभकामनायें
सादर
बेहद आभारी हूँ अनीता जी,हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
ReplyDeleteपलकों से गिर के ख़्वाब कहीं ख़ो जाते हैं....बहुत ही गहरे
उतरती रचना
बेहद आभारी हूँ अनीता जी,हृदय से बहुत शुक्रिया।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ सर। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.12,18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3184 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार आपका सर, बेहद आभारी हूँ।
Deleteवाहह.. बहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ पम्मी जी। हृदयतल से अनंत शुक्रिया।
Deleteख्वाब जागते हैं जब चाँद तारे सो जाते हैं ...
ReplyDeleteवैसे तो हर शेर कमाल का है और ताजगी लिए है पर ये शेर तो गज़ब है ...
कमल की ग़ज़ल है ...
बेहद आभारी हूँ नासवा जी। हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteबेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबेहद.आभारी हूँ अभिलाषा जी।
Deleteबेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ अभिलाषा जी,हृदय से आभार आपका।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ अनुराधा जी बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत आभारी हूँ। बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteउनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
ReplyDeleteफ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
वाह!!!
लाजवाब गजल....
ऐक से बढ़कर एक शेर...
सुधा जी,बेहद आभारी हूँ। बहुत बहुत.शुक्रिया आपका।
Deleteवाह! आपकी रचना कितनी सहज होती है...भाव तो मानों जैसे आपने ही इसे जिया हो। आप कैसे लिखती हैं?
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
"...
ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो गए हैं
वक़्त का आईना मेरे सवाल पर चुप है
दिल क्यों नहीं चेहरों-से बेपर्दा हो जाते हैं
..."
बेहद आभारी हूँ प्रकाश भाई।
Deleteआपकी सुंदर सराहना के लिए बहुत शुक्रिया आपका।
एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
ReplyDeleteतड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं
वा...व्व...बहुत ही बढ़िया रचना, श्वेता दी।
बहुत आभारी हूँ ज्योति जी।
Deletegood thought, beautiful words.
ReplyDeleteWelcome chandra,thanku so much.
Deleteएहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
ReplyDeleteतड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं.... वाह बहुत खूब श्वेता जी
बेहद आभारी हूँ दीपा जी...बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुन्दर,क्या ख़ूब एहसासात का गुलदस्ता हैं ये ग़ज़ल,पढ़कर मज़ा आ गया।
ReplyDeleteउनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
भई वाह।
जफ़र साहब...बहुत आभारी हूँ ...आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteलाजवाब अशआर
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ लोकेश जी...सादर आभार आपका।
Deleteप्रिय श्वेता सभी आशार कमाल के पर ये शेर तो बेमिसाल लगा मुझे |
ReplyDeleteबीत चुका है मौसम इश्क़ का फिर भी
याद के बादल क़ब्र पे आकर रो जाते हैं
कब्र पर आकर याद के बादल का रोना -- अद्भुत !!!!!!! बाकि सारी रचना भी सरस और मधुर है |शुभकामनायें और प्यार |
बेहद आभारी हूँ दी...आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा जाती है। सस्नेह बेहद शुक्रिया दी।
Deleteभावपूर्ण एहसासों का गुलदस्ता.
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ राकेश जी..आपकी उपस्थिति ने रचना को विशेष बना दिया।
Deleteबहुत शुक्रिया आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।
ReplyDeleteउनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं....
कमाल के शेर हैं सभी....
सादर आभार मीना दी...बेहद शुक्रिया.. सस्नेह।
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