Wednesday, 12 December 2018

एहसास जब.....

एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं

ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो जाते हैं

तुम होते हो तो हर मंज़र हसीं होता है
जाते ही तुम्हारे रंग सारे फीके हो जाते हैं

उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं

जाने किसका ख़्याल आबाद है ज़हन में
क्यूँ हम ख़ुद से भी अजनबी हो जाते हैं

बीत चुका है मौसम इश्क़ का फिर भी
याद के बादल क़ब्र पे आकर रो जाते हैं

वक़्त का आईना मेरे सवाल पर चुप है
दिल क्यों नहीं चेहरों-से बेपर्दा हो जाते हैं

-श्वेता सिन्हा


40 comments:

  1. प्रिय श्वेता बहन बहुत ही सुन्दर रचना 👌
    इस रचना के लिए मेरी तरफ़ से ढेर सारी शुभकामनायें
    सादर

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    1. बेहद आभारी हूँ अनीता जी,हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

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  2. ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
    पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं ख़ो जाते हैं....बहुत ही गहरे
    उतरती रचना

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    1. बेहद आभारी हूँ अनीता जी,हृदय से बहुत शुक्रिया।

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    1. बेहद आभारी हूँ सर। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.12,18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3184 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    1. सादर आभार आपका सर, बेहद आभारी हूँ।

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  5. वाहह.. बहुत सुंदर रचना..

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    1. बेहद आभारी हूँ पम्मी जी। हृदयतल से अनंत शुक्रिया।

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  6. ख्वाब जागते हैं जब चाँद तारे सो जाते हैं ...
    वैसे तो हर शेर कमाल का है और ताजगी लिए है पर ये शेर तो गज़ब है ...
    कमल की ग़ज़ल है ...

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    1. बेहद आभारी हूँ नासवा जी। हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका।

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  7. बेहतरीन रचना श्वेता जी

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    1. बेहद.आभारी हूँ अभिलाषा जी।

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  8. बेहतरीन रचना श्वेता जी

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    1. बेहद आभारी हूँ अभिलाषा जी,हृदय से आभार आपका।

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  9. बहुत ही बेहतरीन रचना श्वेता जी

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    1. बहुत आभारी हूँ अनुराधा जी बेहद शुक्रिया आपका।

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    1. जी बहुत आभारी हूँ। बेहद शुक्रिया आपका।

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  11. उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
    फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
    वाह!!!
    लाजवाब गजल....
    ऐक से बढ़कर एक शेर...

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    1. सुधा जी,बेहद आभारी हूँ। बहुत बहुत.शुक्रिया आपका।

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  12. वाह! आपकी रचना कितनी सहज होती है...भाव तो मानों जैसे आपने ही इसे जिया हो। आप कैसे लिखती हैं?
    बहुत ही सुन्दर रचना
    "...
    ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
    पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो गए हैं

    वक़्त का आईना मेरे सवाल पर चुप है
    दिल क्यों नहीं चेहरों-से बेपर्दा हो जाते हैं
    ..."

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    1. बेहद आभारी हूँ प्रकाश भाई।
      आपकी सुंदर सराहना के लिए बहुत शुक्रिया आपका।

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  13. एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
    तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं
    वा...व्व...बहुत ही बढ़िया रचना, श्वेता दी।

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    1. बहुत आभारी हूँ ज्योति जी।

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  14. good thought, beautiful words.

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  15. एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
    तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं.... वाह बहुत खूब श्वेता जी

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    1. बेहद आभारी हूँ दीपा जी...बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।

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  16. बहुत सुन्दर,क्या ख़ूब एहसासात का गुलदस्ता हैं ये ग़ज़ल,पढ़कर मज़ा आ गया।

    उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
    फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
    भई वाह।

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    1. जफ़र साहब...बहुत आभारी हूँ ...आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बेहद शुक्रिया आपका।

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    1. बेहद आभारी हूँ लोकेश जी...सादर आभार आपका।

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  18. प्रिय श्वेता सभी आशार कमाल के पर ये शेर तो बेमिसाल लगा मुझे |
    बीत चुका है मौसम इश्क़ का फिर भी
    याद के बादल क़ब्र पे आकर रो जाते हैं
    कब्र पर आकर याद के बादल का रोना -- अद्भुत !!!!!!! बाकि सारी रचना भी सरस और मधुर है |शुभकामनायें और प्यार |

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    1. बेहद आभारी हूँ दी...आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा जाती है। सस्नेह बेहद शुक्रिया दी।

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  19. भावपूर्ण एहसासों का गुलदस्ता.

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    1. बेहद आभारी हूँ राकेश जी..आपकी उपस्थिति ने रचना को विशेष बना दिया।
      बहुत शुक्रिया आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।

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  20. उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
    फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं....
    कमाल के शेर हैं सभी....

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    1. सादर आभार मीना दी...बेहद शुक्रिया.. सस्नेह।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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