Wednesday, 6 March 2019

उम्मीदें

ऐ दिल,
यही ज़िंदगी है 
समझ ले
भरम हैं ख़्वाब,
सच है टूटती उम्मीदें

छू भी नहीं पाते,
जमीं के 
जलते पाँव,
दरख़्तों से
सायों की, 
बेमानी उम्मीदें

मरकर दर्द में 
फिर से
ज़िंदा होती हैं,
बदलकर पैरहन 
मचलती
बेशर्म उम्मीदें

#श्वेता सिन्हा

22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 09 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ दी..बहुत शुक्रिया।

      Delete
  2. वाह!!श्वेता ,बहुत खूब!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ दी बहुत शुक्रिया।

      Delete
  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभारी हूँ संजय जी..शुक्रिया।

      Delete
  4. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभारी हूँ अनुराधा जी..शुक्रिया।

      Delete
  5. मरकर दर्द में
    फिर से
    ज़िंदा होती हैं,
    बदलकर पैरहन
    मचलती
    बेशर्म उम्मीदें
    वाह !!!बहुत खूब ,सादर स्नेह सखी

    ReplyDelete
  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.03.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3267 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. ऐ दिल,
    यही ज़िंदगी है
    समझ ले
    भरम हैं ख़्वाब,
    सच है टूटती उम्मीदें!!!
    बहुत बड़ा सत्य है प्रिय श्वेता ये जीवन का | भावपूर्ण प्रस्तुती के लिए मेरी शुभकामनायें और प्यार |

    ReplyDelete
  8. मरकर दर्द में
    फिर से
    ज़िंदा होती हैं,
    बदलकर पैरहन
    मचलती
    बेशर्म उम्मीदें

    ......यथार्थ
    बेहतरीन सृजन।

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब 👌👌👌

    ReplyDelete
  10. वा व्व बहुत सुंदर, श्वेता।

    ReplyDelete
  11. वाह बेहद शानदार सृजन श्वेता जी बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  12. वाह
    बहुत सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  13. उम्मीद है तो जीवन है ... और इनका उगना उगते रहना जरूरी है ...
    बहुत ही लाजवाब भावों का आवेग ....

    ReplyDelete
  14. उम्मीद ही तो जीने का नया हौसला देती है। सुंदर कविता।
    नयी पोस्ट: मुकम्मल मोहब्बत की दास्तान।
    iwillrocknow.com

    ReplyDelete
  15. उम्मीद है तो ,
    ज़िन्दगी है
    बेशर्म बन कर ही
    देती है जीने की आस
    मन में भरती है
    एक विश्वास
    कि अभी हम
    ज़िंदा हैं ,
    भले ही
    टूटती रहें
    उम्मीदें
    छूटते रहें
    ख्वाब
    लेकिन जब तक है
    मन में आस
    वक़्त पर
    करते विश्वास
    कि
    कभी तो वक़्त आएगा ,
    हमारी ख्वाहिशों से
    हमारा आँचल
    भर जाएगा ।

    अच्छा लिखा तुमने । वैसे कहते उम्मीद पर दुनिया कायम

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...