गोरी,साँवली,गेहुँआ,काली
मोटी,छोटी,दुबली,लम्बी,
सुंदर,मोहक,शर्मीली,गठीली
लुभावनी,मनभावनी,गर्वीली
कर्कशा,कड़वी,कंटीली
विविध संरचनाओं से निर्मित
आकर्षक ,अनाकर्षक
देह के खोल में बंद
अग्नि-सी तपती
फैलकर अदृश्य प्राणवायु-सी
विस्तृत नभ हृदय आँचल में
समेटती संसार
बुझाती मन की तृष्णा
प्रेम के शीतल जल से सींचकर
बीजों को पालती
अच्छी-बुरी,अनुकूल-प्रतिकूल
परिस्थितियों के हर खाँचें में
व्यवस्थित हो जाती
सृष्टि के पंचभूत मूल में
निहित भावों की प्रामाणिक
परिभाषा स्त्री से है।
जो भी रंग बिखरा है
प्रकृति का कण-कण
जिसकी छुअन से निखरा है
कोमल,रेशमी,नाज़ुक
पशमीना,मादक,नशीला
सोच के रस डूबे विचारों का
अनवरत सिलसिला है
शून्य में गुंजित आह्लाद
सुरीली सरगम,अनहद नाद
श्रृंगार और विलास
रंज़,ख़ुशी,क्षोभ,शोक,व्यथा
उल्लास,उमंग,चटकीला है
दंभ,ओज,पराक्रम,गर्व
पौरुष को मान जो मिला है
धरा पर सृजन का गान
सुरभित उजास
महसूस करो सब स्त्री से है।
#श्वेता सिन्हा
८ मार्च २०१९
सुंदर भावाभिव्यक्ति, शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 मार्च 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह अनुपम सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी
ReplyDeleteसृष्टि के पंचभूत मूल में
ReplyDeleteनिहित भावों की प्रामाणिक
परिभाषा स्त्री से है।
सब स्त्री से है...बहुत ही विचारणीय...
बहुत लाजवाब...
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअति उत्तम ,नमस्कार
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही खूब प्रिय श्वेता | अत्यंत सराहनीय सार्थक सृजन |कितने ही बिम्बों और प्रतीकों में समेटा जाए नारी जीवन का कोई और है ना छोर | सच तो ये है इसे परिभाषित करने की सभी कोशिशें बेकार है | धरा पर हर तरह के उजास और नव सृजन की जननी को नमन | महिला दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सराहनीय कविता। नारी शक्ति को प्रणाम।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.... स्वेता जी
ReplyDeleteस्पष्ट, प्रभावी और गज़ब की कल्पना ... कल्पना नहीं यथार्थ है ये सब ... नारी, स्त्री है तो ये सब होना सार्थक हो पाता है ... नारी शक्ति की सीमा को आंकना मुम्किन नहीं है ... बहुत बहुत बधाई इस शशक्त राच्च्ना के लिए श्वेता जी ...
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