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Friday, 8 March 2019

स्त्री:वैचारिकी मंथन


गोरी,साँवली,गेहुँआ,काली
मोटी,छोटी,दुबली,लम्बी,
सुंदर,मोहक,शर्मीली,गठीली
लुभावनी,मनभावनी,गर्वीली
कर्कशा,कड़वी,कंटीली
विविध संरचनाओं से निर्मित
आकर्षक ,अनाकर्षक
देह के खोल में बंद
अग्नि-सी तपती
फैलकर अदृश्य प्राणवायु-सी
विस्तृत नभ हृदय आँचल में 
समेटती संसार
बुझाती मन की तृष्णा 
प्रेम के शीतल जल से सींचकर
बीजों को पालती
अच्छी-बुरी,अनुकूल-प्रतिकूल
परिस्थितियों के हर खाँचें में
व्यवस्थित हो जाती 
सृष्टि के पंचभूत मूल में
निहित भावों की प्रामाणिक
परिभाषा स्त्री से है।

जो भी रंग बिखरा है 
प्रकृति का कण-कण
जिसकी छुअन से निखरा है
कोमल,रेशमी,नाज़ुक
पशमीना,मादक,नशीला
सोच के रस डूबे विचारों का
अनवरत सिलसिला है
शून्य में गुंजित आह्लाद
सुरीली सरगम,अनहद नाद
श्रृंगार और विलास
रंज़,ख़ुशी,क्षोभ,शोक,व्यथा
उल्लास,उमंग,चटकीला है
दंभ,ओज,पराक्रम,गर्व
पौरुष को मान जो मिला है
धरा पर सृजन का गान
सुरभित उजास
महसूस करो सब स्त्री से है।

#श्वेता सिन्हा
८ मार्च २०१९

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