तमतमाते धूप का
बेरंग चेहरा देख
बालकनी के
गमलों में खिलखिलाते
गुलाब,बेली,सदाबहार के
फूल सहम गये,गर्दन झुकाये,
बैठक की काँच की
खिड़की से होकर
परदों की झिर्रियों से
साधिकार सोफे पर
आकर पैर फैलाते
धूप को देखकर
हवा का झोंका जोर से
बड़बड़ाया,परदे हिलाकर,
फड़फड़ाते किताब और
अख़बार के पन्नों के शोर
से चिड़चिड़ाया धूप
चुपचाप उठकर
बाहर आँगन में चला आया।
तेज़ क़दमों से चढ़कर
बरगद की फुनगी पर
शाखों की बाहों के मख़मली घेरे में
लेटे,अधलेटे,चहकते
परिदों को सताने लगा,
दिन भर गरम बूँदों की
पिचकारियों से
सड़कों,बागों,नदियों को
झुलसाता रहा
भटकता रहा पूरा दिन आवारा,
साँझ की दस्तक सुनकर
बेडरूम की खिड़की के समीप
बोगनबेलिया की झाडियों
के नीचे बिछाकर
गद्देदार मौन का बिस्तर
ओढ़कर स्याह चादर, बेख़बर
नींद के आगोश में खो गया,
मुँह अंधेरे कोयल और बुलबुल की
मीठी रियाज़ सुनकर कुनमुनाया
इधर-उधर करवट बदलता
गौरेया की चीं-चीं,चूँ-चूँ पर
अंगड़ाई लेकर
आँखें मलता,केसरी पलकें
खोलकर बैठा है
तुलसी के बिरवे की गीली मिट्टी पर
पुरवाई के धप्पे से चिंहुका
अब शरारत से
धमा-चौकड़ी मचायेगा
लुका-छिपी खेलेगा धूप
सारा दिन।
#श्वेता सिन्हा
२७ अप्रैल "१९"
२७ अप्रैल "१९"
वाह श्वेता ! बहुत सुंदर चित्रण। एक मौलिक एवं अनछुआ सृजना। आपकी कल्पनाशीलता एवं उसे शब्दों में ढालने की जादूगरी के क्या कहने !!! मेरी ओर से ढेर सारा प्यार इस रचना के लिए।
ReplyDeleteकविता पढ़ते समय धूप के साथ पकड़ा-पकड़ी और लुका-छिपी खेलने का अहसास जिवंत होता रहा।
आपके इस अनमोल प्रेम और स्नेह का साथ सदैव बनाये रखियेगा दी..हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-04-2019) को " गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन की ९९ वीं पुण्यतिथि " (चर्चा अंक-3319) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनीv
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteप्रकृति का सजीव चित्रण ,बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteश्वेता ! ग्रीष्म ऋतु की क्रूर और बेमुरव्वत धूप को नटखट, प्यारे और शरारती बच्चे के रूप में चित्रित करना तो बस तुम ही जानती हो.
ReplyDeleteबहुत खूब रचना प्रिय श्वेता तुम्हारी अपनी शैली की। मैं लाख चाहूँ तो भी इस तरह नहीं लिख पाऊँगी। स स्नेह शुभकामनाएं और प्यार।
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