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Saturday, 27 April 2019

धूप


तमतमाते धूप का 
बेरंग चेहरा देख
बालकनी के
गमलों में खिलखिलाते
गुलाब,बेली,सदाबहार के 
फूल सहम गये,गर्दन झुकाये,
बैठक की काँच की
खिड़की से होकर
 परदों की झिर्रियों से 
 साधिकार सोफे पर
आकर पैर फैलाते 
धूप को देखकर
हवा का झोंका जोर से
बड़बड़ाया,परदे हिलाकर,
फड़फड़ाते किताब और 
अख़बार के पन्नों के शोर
से चिड़चिड़ाया धूप
चुपचाप उठकर
बाहर आँगन में चला आया।
तेज़ क़दमों से चढ़कर
बरगद की फुनगी पर
शाखों की बाहों के मख़मली घेरे में
लेटे,अधलेटे,चहकते
परिदों को सताने लगा,
दिन भर गरम बूँदों की
पिचकारियों से 
सड़कों,बागों,नदियों को
झुलसाता रहा
भटकता रहा पूरा दिन आवारा,
साँझ की दस्तक सुनकर
बेडरूम की खिड़की के समीप
बोगनबेलिया की झाडियों 
के नीचे बिछाकर
गद्देदार मौन का बिस्तर
ओढ़कर स्याह चादर, बेख़बर
नींद के आगोश में खो गया,
मुँह अंधेरे कोयल और बुलबुल की
मीठी रियाज़ सुनकर कुनमुनाया
इधर-उधर करवट बदलता
गौरेया की चीं-चीं,चूँ-चूँ पर
अंगड़ाई लेकर
आँखें मलता,केसरी पलकें 
खोलकर बैठा है 
तुलसी के बिरवे की गीली मिट्टी पर
पुरवाई के धप्पे से चिंहुका
अब शरारत से 
धमा-चौकड़ी मचायेगा
लुका-छिपी खेलेगा धूप
सारा दिन। 

#श्वेता सिन्हा
२७ अप्रैल "१९"

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