Sunday 28 April 2019

तुझमें ही...मन#१

बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना

ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना

तुम्हारे एहसास की गंध से मताये
बेज़ान,पंखहीन,स्पंदनहीन पड़़े
बंद मन की झिर्रियों से छटपटाती,
बेसुध तितलियों का मचलना

तुम्हारी हर बात को समेटकर
सीने से लिपटाये हुये घंटों तक
झरोखे,छत,घर के कमरों में फैला
अपने लिये तुम्हारे एहसास चुनना

देर तक तुम्हारे मौन होने पर
बेचैन हो मन ही मन पगलाना
उदास आँखों के सूनेपन में पसरी
तुम्हारी तस्वीरों के रंगों को भरना

सोचती हूँ क्यों एहसास मन के
यूँ मन को भावों से ढके रहते हैं?
बदलते मौसम से बेअसर,बेख़बर
मेरा सिर्फ़ तुझमें ही खोये रहना

#श्वेता सिन्हा

10 comments:

  1. Replies
    1. बहुत आभारी हूँ लोकेश जी..सादर शुक्रिया।

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  2. अनुरागी मन के गहरे एहसास भरी रचना प्रिय श्वेता
    । हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार।

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  3. सोचती हूँ क्यों एहसास मन के
    यूँ मन को भावों से ढके रहते हैं?
    बदलते मौसम से बेअसर,बेख़बर
    मेरा सिर्फ़ तुझमें ही खोये रहना...
    बहुत दिनों बाद कोई रचना मेरे अन्तस्थ को छू गई । एक प्रभावशाली लेखन हेतु असीम शुभकामनाएं स्वीकार करें आदरणीय श्वेता जी। माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा सदैव बनी रहे ।

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  4. तुम्हारी हर बात को समेटकर
    सीने से लिपटाये हुये घंटों तक
    झरोखे,छत,घर के कमरों में फैला
    अपने लिये तुम्हारे एहसास चुनना
    वाहवाह श्वेता जी कोई आपसे सीखे अनकहे एहसासों को इतनी खूबसूरती से बुनना....
    बहुत लाजवाब ।

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  5. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  6. प्रेम की अति में ऐसा खुद बी खुद हो जाता है ...मन में जग दीप जलते हैं तो कौन रौशनी से दूर हो पाता है ... सही जीवन है ...
    अच्छी रचना है ...

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  7. बरबस ही सोचने लगी हूँ
    उम्र की गिनती भूलकर
    मन की सूखती टहनियों पर
    नरम कोंपल का अँखुआना
    तभी तो मन कहता है ...."कुछ बात तो है"

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  8. वाह !!!सखी बेहतरीन लेखन 👌👌
    सादर

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  9. वाह!!श्वेता ,बेहतरीन !!

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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