बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना
ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना
तुम्हारे एहसास की गंध से मताये
बेज़ान,पंखहीन,स्पंदनहीन पड़़े
बंद मन की झिर्रियों से छटपटाती,
बेसुध तितलियों का मचलना
तुम्हारी हर बात को समेटकर
सीने से लिपटाये हुये घंटों तक
झरोखे,छत,घर के कमरों में फैला
अपने लिये तुम्हारे एहसास चुनना
देर तक तुम्हारे मौन होने पर
बेचैन हो मन ही मन पगलाना
उदास आँखों के सूनेपन में पसरी
तुम्हारी तस्वीरों के रंगों को भरना
सोचती हूँ क्यों एहसास मन के
यूँ मन को भावों से ढके रहते हैं?
बदलते मौसम से बेअसर,बेख़बर
मेरा सिर्फ़ तुझमें ही खोये रहना
#श्वेता सिन्हा