मज़दूर का नाम आते ही
एक छवि ज़ेहन में बनती है
दो बलिष्ठ भुजाएँ दो मज़बूत पाँव
बिना चेहरे का एक धड़,
और एक पारंपरिक सोच,
बहुत मज़बूत होता है एक मज़दूर
कुछ भी असंभव नहीं
शारीरिक श्रम का कोई
भी काम सहज कर सकता है
यही सोचते हम सब,
हाड़ तोड़ मेहनत की मज़दूरी
के लिये मालिकों की जी-हुज़ूरी करते
पूरे दिन ख़ून-पसीना बहाकर
चंद रुपयों की तनख़्वाह
अपर्याप्त दिहाड़ी से संतुष्ट
जिससे साँसें खींचनेभर
गुज़ारा होता है
उदास पत्नी,बिलखते बच्चे
बूढ़े माता-पिता का बोझ ढोते
जीने को मजबूर
एक ज़मीन को बहुमंजिला
इमारतों में तब्दील करता
अनगिनत लोगों के ख़्वाबों
की छत बनाता
मज़दूर,जिसके सर पर
मौसम की मार से बचने को
टूटा छप्पर होता है
गली-मुहल्ले,शहरों को
क्लीन सिटी बनाते
गटर साफ़ करते,कड़कती धूप में
सड़कों पर चारकोल उड़ेलते,
कल-कारखानों में हड्डियाँ गलाते
सँकरी पाताल खदानों में
जान हथेली पर लिये
अनवरत काम करते मज़दूर
अपने जीवन के कैनवास पर
छैनी-हथौड़ी,कुदाल,जेनी,तसला
से कठोर रंग भरते,
सुबह से साँझ तक झुलसाते हैं,
स्वयं को कठोर परिश्रम की
आग में,ताकि पककर मिल सके
दो सूखी रोटियों की दिहाड़ी
का असीम सुख।
#श्वेता सिन्हा
श्रमिकों के सम्मान में सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बेहतरीन !!👍
ReplyDeleteजदूरों को सम्पूर्ण जीवन चित्रण ,बहुत सुंदर और यथार्थ रचना स्वेता जी ,सादर स्नेह
ReplyDeleteश्रमिक दिवस पर बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteश्रमिकों को उनका उचित सम्मान मिलना चाहिए श्रमिक दिवस पर बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteसुबह से साँझ तक झुलसाते है,
ReplyDeleteस्वयं को कठोर परिश्रम की
आग में,ताकि पककर मिल सके
दो सूखी रोटियों की दिहाड़ी
का असीम सुख।
श्रमिकों को समर्पित प्रभावशाली सृजन ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनवरत काम करते मज़दूर
ReplyDeleteअपने जीवन के कैनवास पर
छेनी ,हथौड़ी,कुदाल,जेनी,तन्सला
से कठोर रंग भरते,......श्रम-सीकर से सिक्त साधकों की साधना का सार्थक संगीत!!!! बधाई और आभार!!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 2 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही सुन्दर रचना प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमजदूरों की स्थिति को दर्शाती सुंंदर रचना..
ReplyDeleteमजदूर को एवं उसके काम को जब तक इज्जत नहीं मिलती,उसके श्रम का उचित मोल नहीं मिलता, तब तक यही उसकी हालत रहने वाली है। भारत में एक सरकारी नौकरी करनेवाले प्रोफेसर को साठ हजार से एक लाख रुपए महीने वेतन मिलता है और कड़ी धूप में काम करते, अपने स्वास्थ्य से खेलकर देश का निर्माण करते मजदूरों एवं सफाई कर्मचारियों को प्रतिदिन पाँचसौ रुपए देना भी बहुत ज्यादा लगता है।
ReplyDeleteएक समय की चूल्हे की आग के लिये ये दिन रात आग में जलते हैं... बहुत सटीक और हृदय स्पर्शी चित्रण श्रमिकों का श्वेता बहुत सार्थक सृजन
ReplyDeleteमजदूर
ReplyDeleteअपर्याप्त दिहाड़ी से संतुष्ट
जिससे साँसें खींचनेभर
गुज़ारा होता है
उदास पत्नी,बिलखते बच्चे
बूढ़े माता-पिता का बोझ ढोते
जीने को मजबूर
बहुत ही सटीक सार्थक हृदयस्पर्शी रचना...
बेहद सशक्त औऱ सटीक लिखा आपने 👍
ReplyDeleteमजदूर तो मजदूर है
ReplyDeleteहर सुविधा से दूर है
बहुत बढ़िया कविता।
ReplyDeleteVery well described the life of labour on this day. Priceless rachna.
ReplyDelete