Thursday 18 April 2019

मैं समाना चाहती हूँ


मैं होना चाहती हूँ
वो हवा,
जो तुम्हारी साँसों में
घुलती है 
हरपल जीवन बनकर
निःशब्द!


जाड़ों की गुनगुनी धूप,
गर्मियों के भोर के
सूरज का मासूम चेहरा
वो उजाला
जो तुम्हारी 
आँखों को चूमता है
हर दिन।


बादल का वो
नन्हा-सा टुकड़ा 
जो स्वेद में भींजते
धूप से परेशान
तुम्हारे थकेे बदन को
ढक लेता है
बिना कुछ कहे।


बारिश की 
नन्हींं-नन्हीं लड़ियाँ
जो तुम्हारे मुखड़े पर
फिसलकर
झूमती है इतराकर।


तुम्हारी छत के
मुंडेर से,
झरोखे से झाँकते
आसमान के स्याह
चुनरी पर गूँथे
सितारों की
भीड़ में गुम
एक सितारा बन
तुम्हें देखना चाहती हूँ
नींद में खोये
सारी रात
चुपचाप....


जल की स्वाति-बूँद
बनकर
कंठ में उतरकर
तुम्हारे अंतर में
विलीन होना चाहती हूँ।


तुम्हारे आँगन की माटी
जिसे तुम्हारे पाँव 
कोमलता से दुलारते हैं
अनजाने ही
वो फूल जिसकी खुशबू
तुम कभी भुला नहीं पाते।


सुनो! मैं निःशब्द,मौन
समाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के 
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर।

#श्वेता सिन्हा




23 comments:

  1. Replies
    1. जी आभारी हूँ सर...सादर शुक्रिया।

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  2. पानी की बूँद
    बनकर
    कंठ में उतरकर
    तुम्हारे अंतर में
    विलीन होना चाहती हूँ
    बेहतरीन...
    आनन्दित हुई..
    सादर..

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    Replies
    1. आभारी हूँ दी..मन मुदित हुआ..आपकी सराहनाका आशीष मिला।
      सादर शुक्रिया।

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  3. अगर साँसों की डोर कटने तक के बजाए जन्म-जन्मान्तर तक हो तो भाव और भी समर्पित हो सकती है (वैसे अगले-पिछले जन्म में विश्वास नहीं हमारा) ...बहुत संवेदनशील अनुभूति से सराबोर रचना ...अंतर्मन से अंतर्मन तक

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  4. जी आभारी हूँ.आपका सुझाव पसंद आया..और हम सुधार लिये...सादर शुक्रिया.. स्नेहाशीष बनाये रखे।

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  5. समर्पित प्रेम की बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

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  6. समर्पण की गहन अनुभूतियों से भरी रचना प्रिय श्वेता | हार्दिक शुभकामनायें |

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  7. प्रेम पर ,अत्यंत गहनता से भरी अनुभूतियों को अपने शब्दों में पिरोया है मैम आपने..... बहुत ही खूबसूरत रचना ।

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  8. सुनो! मैं निःशब्द,मौन
    समाना चाहती हूँ
    तुम्हारे जीवन में
    प्रकृति के
    हर उस कण की तरह
    जो मौजूद है साथ तुम्हारे
    शाश्वत
    जन्म-जन्मांतर
    एक स्त्री के निष्कलुष समर्पण की अभिव्यक्ति जो कुछ चाहती नहीं बस देने में विश्वास रखती है। बधाई प्रिय श्वेता।

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  9. बादल का वो
    नन्हा टुकड़ा
    जो स्वेद में भींजते
    धूप से परेशान
    तुम्हारे थकेे तन को
    ढक लेता है
    बिना कुछ कहे।
    ...
    'भावों का निर्झर' इससे ज़्यादा कह पाने की मुझमें सामर्थ्य नहीं।

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  10. पानी की बूँद
    बनकर
    कंठ में उतरकर
    तुम्हारे अंतर में
    विलीन होना चाहती हूँ
    बहुत खूब ...

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को "रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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  12. बहुत बढ़िया

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  13. सुनो! मैं निःशब्द,मौन
    पढ़ना चाहती हूँ
    तुम्हारे रचित संग्रह
    प्रकृति के
    हर कण को अपने अहसास के साथ गूंथ देती हो।
    बहुत बहुत सुंदर ।

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  14. बहुत खूबसूरत अहसासों के साथ सजी रचना है,श्वेता जी।
    बेहतरीन।

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  15. वा व्व श्वेता दी,समर्पण की अद्भुत अभिव्यक्ति।

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  16. सुनो! मैं निःशब्द,मौन
    समाना चाहती हूँ
    तुम्हारे जीवन में
    प्रकृति के
    हर उस कण की तरह
    जो मौजूद है साथ तुम्हारे
    शाश्वत
    जन्म-जमांतर।
    दार्शनिक अंदाज की बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीया श्वेता जी।

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  17. वाह!!!बहुत ही लाजवाब....
    बस लाजवाब...
    सुनो! मैं निःशब्द,मौन
    समाना चाहती हूँ
    तुम्हारे जीवन में
    प्रकृति के
    हर उस कण की तरह
    जो मौजूद है साथ तुम्हारे
    शाश्वत
    जन्म-जमांतर।
    वाहवाह....

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  18. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/118.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  19. सुनो! मैं निःशब्द,मौन
    समाना चाहती हूँ
    तुम्हारे जीवन में
    प्रकृति के
    हर उस कण की तरह
    जो मौजूद है साथ तुम्हारे
    शाश्वत
    जन्म-जमांतर.... वाह! अंतस के अनुराग का अनहद नाद।

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  20. बहुत सुन्दर

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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