लह-लह,लह लहकी धरती
उसिनी पछुआ सहमी धरती
सही गयी न नभ से पीड़ा
भर आयी बदरी की अँखियाँ
लड़ियाँ बूँदों की फिसल गयी
टप-टप टिप-टिप बरस गयी
अंबर की भूरी पलकों में
बदरी लहराते अलकों में
ढोल-नगाड़े सप्तक नाद
चटकीली मुस्कान सरीखी
चपला चंचल चमक गयी
बिखर के छ्न से बरस गयी
थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी
जलते तन पर फिर बरस गयी
कण-कण महकी सोंधी खुशबू
ऋतु अंगड़ाई मन को भायी
अवनि अधर को चूम-चूम के
लिपट माटी की प्यास बुझायी
गंध नशीली महक गयी
मदिर रसधारा बरस गयी
व्यथित सरित के आँगन में
बूँदों की गूँजी किलकारी
सरवर तट झूमा इतराया
ले संजीवनी बरखा आयी
तट की साँसें बहक गयी
नेह भरी बदरी बरस गयी
क्यारी-क्यारी रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अवनि अन्नपूर्णा करने को
खुशी बूँद में बाँध के लायी
कोख धरा की ठहर गयी
अंबर से खुशियाँ बरस गयी
#श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 23, 2019 को साझा की गई है पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ दी आपका अनुपम आशीष बना रहे।
Deleteअनुपम कृति ¡ मनोहर सुंदर काव्य सृजन। शब्दों का अभिनव प्रयोग बहुत प्यारी सरस रचना।
ReplyDeleteवरखा ने सच लगता दिल के तार छेड़ दिए
लेखनी ने पन्ने पर देखो नव रंग बिखेर दिए।
सुन्दर और सामयिक
ReplyDeleteवाह,अनुपम रचना
ReplyDeleteबढ़िया।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23 -06-2019) को "आप अच्छे हो" (चर्चा अंक- 3375) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
अनुपम ये तो सचमुच बरखा का आगमन हो गया!!!!
ReplyDeleteभारत को विविधताओं से भरा देश इसीलिए कहते हैं कि कहीं झमाझम बारिश तो कहीं बूँद-बूँद को तरसते लोग.
ReplyDeleteजहाँ बरसात की प्रतीक्षा वहाँ इस कविता के ज़रिए रसमर्मज्ञ पावस ऋतु का पावन आनन्द उठाएँगे
सुन्दर भावों को कलात्मकता की ओढ़नी में लपेटा गया है.
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २४५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteरहा गर्दिशों में हरदम: २४५० वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अंबर की भूरी पलकों में
ReplyDeleteबदरी लहराते अलकों में
ढोल-नगाड़े सप्तक नाद
चटकीली मुस्कान सरीखी
चपला चंचल चमक गयी
बिखर के छ्न से बरस गयी...
सुना था मानसून थोड़ा लेट है... मगर कहाँ... श्वेता की रचना में तो झूम के आया है और वह भी पूरी खूबसूरती के साथ :-)
शब्दों में बारिश की रिमझिम सुनाई दे रही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मनभावन रचना ,श्वेता जी
ReplyDeleteअद्भुत रचना 👌👌
ReplyDeleteवाह प्रकृति और बरखा का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना
ReplyDeleteबदरी के साथ साथ भाव भी बरस गये
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना ... बद्री के आने के साथ बूंदों का एहसास दिल को आनंदित कर देता है और फिर बूँदें तो सोंधी खुशबू ले आती हैं ...
ReplyDeleteअहा, बहुत सुंदर मनोहारी रचना 👌
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteकण-कण महकी सोंधी खुशबू
ReplyDeleteऋतु अंगड़ाई मन को भायी
अवनि अधर को चूम-चूम के
लिपट माटी की प्यास बुझायी
गंध नशीली महक गयी
मदिर रसधारा बरस गयी
वाह!!!
बहुत ही खूबसूरती से बरसी भावों की बदरी अब आसमान की बदरी भी बरस जाय....
बहुत ही लाजवाब सृजन ।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
क्यारी-क्यारी रंग भरने को
ReplyDeleteजीवन अमृत जल धरने को
अवनि अन्नपूर्णा करने को
खुशी बूँद में बाँध के लायी
कोख धरा की ठहर गयी
अंबर से खुशियाँ बरस गयी ।
कितना मनोहारी दृश्य उपस्थित किया और अंत में बरखा से होने वाले परिवर्तन को भी बखूबी लिखा है । बहुत सुंदर सृजन ।
बहुत सुन्दर मनहर सृजन
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