Tuesday, 6 August 2019

जब तुम.....


मन के थककर 
चूर होने तक
मन के भीतर ही भीतर
पसीजते दीवारों पर
निरंतर स्पंदित,
अस्पष्ट तैरते 
वैचारिक दृश्य,
उलझन,उदासी,बेचैनी से
मुरुआता,छटपटाता हर लम्हा
मन की थकान से 
निढ़ाल तन की 
बदहवास लय
अपने दायरे में बंद
मौन की झिर्रियों पर
साँस टिकाये
देह और मन का
बेतरतीब तारतम्य
बेमतलब के जीवन से
विरक्त मन
मुक्त होना चाहता है
देह के बंधन से
जब तुम रुठ जाते हो।

#श्वेता सिन्हा




17 comments:

  1. और इंतहा क्या होगी
    इससे ज्यादा बंया क्या होगी
    मन ही मन की गवाही देता रहे गर
    तन की थकन अलग कब कैसे कहां होगी।
    बहुत उम्दा एहसासों में लिपटी बेहतरीन रचना।

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    1. आभारी हूँ दी बहुत शुक्रिया।

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  2. वाह बेहद उम्दा आदरणीय दीदी जी
    सादर नमन

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    1. आभारी हूँ आँचल..बहुत शुक्रिया।

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  3. बहुत खूब, दी! भावुक रचना।
    प्रणाम,
    मेरा एक शिकायत है...या कहूं कहीं आप मुझसे नाराज हैं, रूठ गई हैं.......पता नहीं जो भी कारण हो या ना भी कारण हो....पर मुझे कुछ दिनों से आपका मार्गदर्शन नहीं मिल रहा।

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    1. आभारी हूँ भाई..माफी चाहती हूँ व्यस्तता की वजह से ब्लॉग विजिट नहीं कर पा रहे...जल्दी ही जरूर आयेगे भाई।

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  4. सही है
    किसी अपने के रूठ जाने से मन की उपजाऊ जमीन पर एक खालीपन सा उग जाता है तब जिन्दगी बेमतलब सी लगती है. आपकी रचना मुझे हमेशा से ही बेहद पसंद आती है.
    एक बात पूछूं-
    ये अप्रूवल कैसे हटता है ? :D ;D

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    1. जी आभारी हूँ रोहित जी।
      जी एप्रूवल हटाने के लिए सबसे पहले ब्लॉग पेज के सेंटिग्स में जाइये फिर टिप्पणी और साझाकरण में उसमें ऑप्शन आता है टिप्पणी नियंत्रण
      हमेशा
      कभी कभी
      कभी नहीं
      आपको लास्ट वाला ऑप्शन क्लिक करना होगा फिर आपके ब्लॉग पर से एप्रूवल खत्म हो जायेगा।

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    2. धन्यवाद...
      कृपया मेरी किसी पोस्ट पर टिप्पणी देकर देखना कि हट गया है क्या???
      मैंने कुछ तो सेटिंग में किया है :D :D

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  5. आभारी हूँ सर सादर शुक्रिया।

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  6. वाह बहुत खूब लिखा श्वेता।
    शानदार भी, जानदार भी।
    बेहतरीन।

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  7. बेहद खूबसूरत भाव...बिम्ब, शैली सब मन को मोह गए..अदभुत ..

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  8. मन से मन तक, मन की बात ....... :)

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  9. बहुत ही शानदार लिखा है आपने

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  10. किसी का जाना दिल को गहरा अवसाद दे जाता है ...
    ऐसे ही लम्हों को बन के लिखी रचना ...

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  11. बेमतलब के जीवन से
    विरक्त मन
    मुक्त होना चाहता है
    देह के बंधन से
    जब तुम रुठ जाते हो।
    बहुत ही सुन्दर...
    जीवन ही बेमतलब हो जाता है
    उनके रूठने से...
    वाह!!!!

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  12. सुंदर अभिव्यक्ति

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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