सप्तपदी की कसमों को
व्यावहारिक सारे रस्मों को
मैं घोल के प्रेम में हूँ पीती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
तुम्हें मोह पाऊँ वो रुप नहीं
हिय प्रेमभरा अर्पण तुमको
सुख-दुख जीवन के पंथ प्रिये
कंटक हो कि पाषाण मिले
निर्झर झर-झर बन हूँ झरती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
रुप-शृंगार तुमसे प्रियतम
ये रंग-बहार तुम बिन फीका
तुम भुला न दो जग बीहड़ में
कभी सूरज तो कभी चंदा से
स्मृतियों को तुम्हारी हूँ बुनती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
आजीवन संग की चाह लिये
दिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
निर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
#श्वेता सिन्हा
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
ReplyDeleteनिर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
बेहतरीन
सादर
वाह बहुत सुंदर सरस रचना।भगवान तुम्हारी सभी मनौतियाँ पूर्ण करें।
ReplyDeleteरुप-शृंगार तुमसे प्रियतम
ReplyDeleteये रंग-बहार तुम बिन फीका
तुम भुला न दो जग बीहड़ में
कभी सूरज तो कभी चंदा से
स्मृतियों को तुम्हारी हूँ बुनती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
बहुत ही सुन्दर,लाजवाब रचना
वाह !!!
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteपवित्र प्रेम की भावनाओं को शब्दों में शानदार पिरोया है आपने
ReplyDeleteशुभकामनाएं
भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकरवाचौथ पर इतनी प्यार भरी, इतनी शुभकामनाओं भरी कविता !
ReplyDeleteप्यार का इज़हार भी और आशीर्वाद की फुहार भी !
अब तो बदले में प्यार भी पक्का और तगड़ा उपहार भी !
आजीवन संग की चाह लिये
ReplyDeleteदिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
निर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती !
बहुत मनभावन छंद !
वाह छलकता प्यार, शाश्र्वत समर्पण,
ReplyDeleteमन के कोरे एहसास, जैसे इंद्रधनुषी रंगों से सज कर जीवन बगिया में रस बस गये हो ।
शाश्वत प्रेम की सरस रचना ।
उत्तम काव्य।
आजीवन संग की चाह लिये
ReplyDeleteदिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
निर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता दी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आजीवन संग की चाह लिये
ReplyDeleteदिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
निर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
बहुत खूब प्रिय श्वेता। जीवनसाथी के प्रति मन के अनुराग भाव बहुत ही मधुरता से मुखर हुए हैं रचना में। दुआ है ये प्रेम भाव अक्षुण्ण रहे और ये साथ अमर हो । सुहाग पर्व की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। 💐🌷💐🌷💐🌷💐
अनुपम भाव लिए अप्रतिम सृजन अनुजा ... स्नेहिल शुभकामनाएं
ReplyDeleteप्रेम रस से सराबोर रचना।
ReplyDeleteखूब।
सुंदर लेखन ।।।।
ReplyDeleteप्रेम रस से ओतप्रोत अति सुन्दर रचना
ReplyDeleteनिर्जल व्रत का टोटका करती
ReplyDeleteनजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती !
बहुत मनभावन