Thursday, 17 October 2019

तुम्हें देख-देखकर


सप्तपदी की कसमों को
व्यावहारिक सारे रस्मों को
मैं घोल के प्रेम में हूँ पीती 
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती 

तुम्हें मोह पाऊँ वो रुप नहीं
हिय प्रेमभरा अर्पण तुमको
सुख-दुख जीवन के पंथ प्रिये
कंटक हो कि पाषाण मिले
निर्झर झर-झर बन हूँ झरती 
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती 

रुप-शृंगार तुमसे प्रियतम
ये रंग-बहार तुम बिन फीका
तुम भुला न दो जग बीहड़ में
कभी सूरज तो कभी चंदा से
स्मृतियों को तुम्हारी हूँ बुनती 
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती 

आजीवन संग की चाह लिये
दिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
निर्जल व्रत का टोटका करती
नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती 
तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती 

#श्वेता सिन्हा

18 comments:

  1. न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
    निर्जल व्रत का टोटका करती
    नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
    बेहतरीन
    सादर

    ReplyDelete
  2. वाह बहुत सुंदर सरस रचना।भगवान तुम्हारी सभी मनौतियाँ पूर्ण करें।

    ReplyDelete
  3. रुप-शृंगार तुमसे प्रियतम
    ये रंग-बहार तुम बिन फीका
    तुम भुला न दो जग बीहड़ में
    कभी सूरज तो कभी चंदा से
    स्मृतियों को तुम्हारी हूँ बुनती
    तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
    बहुत ही सुन्दर,लाजवाब रचना
    वाह !!!

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  5. पवित्र प्रेम की भावनाओं को शब्दों में शानदार पिरोया है आपने

    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  6. भावपूर्ण सृजन

    ReplyDelete
  7. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. करवाचौथ पर इतनी प्यार भरी, इतनी शुभकामनाओं भरी कविता !
    प्यार का इज़हार भी और आशीर्वाद की फुहार भी !
    अब तो बदले में प्यार भी पक्का और तगड़ा उपहार भी !

    ReplyDelete
  9. आजीवन संग की चाह लिये
    दिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
    न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
    निर्जल व्रत का टोटका करती
    नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती !
    बहुत मनभावन छंद !

    ReplyDelete
  10. वाह छलकता प्यार, शाश्र्वत समर्पण,
    मन के कोरे एहसास, जैसे इंद्रधनुषी रंगों से सज कर जीवन बगिया में रस बस गये हो ।
    शाश्वत प्रेम की सरस रचना ।
    उत्तम काव्य।

    ReplyDelete
  11. आजीवन संग की चाह लिये
    दिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
    न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
    निर्जल व्रत का टोटका करती
    नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
    तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
    बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता दी।

    ReplyDelete
  12. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  13. आजीवन संग की चाह लिये
    दिन-रात मनौतियाँ करती हूँ
    न नज़र लगे तुम्हें दुनिया की
    निर्जल व्रत का टोटका करती
    नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती
    तुम्हें देख-देखकर हूँ जीती
    बहुत खूब प्रिय श्वेता। जीवनसाथी के प्रति मन के अनुराग भाव बहुत ही मधुरता से मुखर हुए हैं रचना में। दुआ है ये प्रेम भाव अक्षुण्ण रहे और ये साथ अमर हो । सुहाग पर्व की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। 💐🌷💐🌷💐🌷💐

    ReplyDelete
  14. अनुपम भाव लिए अप्रतिम सृजन अनुजा ... स्नेहिल शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  15. प्रेम रस से सराबोर रचना।
    खूब।

    ReplyDelete
  16. प्रेम रस से ओतप्रोत अति सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  17. निर्जल व्रत का टोटका करती
    नजरौटा बनकर मैं हूँ फिरती !
    बहुत मनभावन

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...