Saturday 14 December 2019

वीर सैनिक

चित्र:साभार गूगल
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हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों 
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य
वीर सैनिक।

उड़ते हिमकणों से
लिपटी वादियों में
कठिनाई से श्वास लेते
सुई चुभाती हवाओं में
पीठ पर मनभर भार लादे
सुस्त गति,चुस्त हिम्मत
दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ  ,
प्रकृति की निर्ममता से
जूझते 
पशु-पक्षी,पेड़-विहीन
निर्जन अपारदर्शी काँच से पहाड़ों 
के बंकरों में
गज़भर काठ की पाटियों पर
अनदेखे शत्रुओं की करते प्रतीक्षा
वीर सैनिक।

एकांत,मौन में
जमी बर्फ की पहाड़ियों के
भीतर बहती जलधाराओं-सी
बहती हैं भावनाएँ
प्रतिबिंबित होती है
भीतर ही भीतर दृश्य-पटल पर
श्वेत पहाड़ों की 
रंगहीन शाखों से
झरती हैं बचपन से जवानी तक 
की इंद्रधनुषी स्मृतियाँ
"बुखारी"-सी गरमाहट लिये...,
गुनगुनी धूप के साथ
सरकती चारपाई,
मूँगफली,छीमियों के लिए
साथियों से
छीना-झपटी कुश्ती, लड़ाई,
अम्मा की गरम रोटियाँ
बाबा की झिड़की,
भाभी की बुनाई,
तिल-गुड़,नये धान की
रसीली मिठाई....,
स्मृतियों के चटखते
अलाव की गरमाहट में
साँझ ढले  
गहन अंधकार में
बर्फ के अनंत समुन्द्र में
हिचकोले खाती नाव पर सवार
घर वापसी की आस में
दिन-गिनते,
कभी-कभी बर्फीले सैलाब में
सदा के लिए विलीन हो जाते हैं
कभी लौट कर नहीं आते हैं
वीर सैनिक।

#श्वेता सिन्हा

25 comments:

  1. श्वेता दी,सैनिकों का जीवन कितना कठीन होता हैं, वे लोग कितनी कठिन परिस्थियों में सीमा पर डटे रहते हैं इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने।

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ ज्योति दी।
      सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 14 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  3. सैनिको के कठिन जीवन का सजीव चित्रण किया हैं आपने ,सत सत नमन इन वीरों को

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ कामिनी जी।
      सादर।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१५ -१२ -२०१९ ) को "जलने लगे अलाव "(चर्चा अंक-३५५०) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय अनु।
      सस्नेह शुक्रिया।

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    1. जी बहुत आभारी हूँ...सादर शुक्रिया।

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  6. बहुत ही मननशील रचना मैम। गूढ़ार्थ से परिपूर्ण, भावनात्मक दृष्टिकोण से भावुकता का पैगाम देती और सैनिक के जीवन में आने वाली कठिनाइयों एवं चुनौती पूर्ण मौसम के कठिन क्षणों को दर्शाती एक श्रेष्ठ रचना।

    "एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते..." सच कहूँ तो इस पंक्ति पर आ कर मैं ठहर सा गया। बहुत कुछ मन में हिलकोर लेने लगा, एक ऐसा जीवन जो कुछेक अनदेखे लोगों के लिए कुछेक अनदेखे लोगों को वैरभाव से देखता है। ख़ुद कष्ट में रहते हुए, अपने साथी के कष्ट को देखते हुए (जिन्हें वह नहीं देखना चाहता), उसे इन अंतहीन चुनौतियों से निपटने का आश्वासन देता है। सचमुच, गला रुँध गया😓।

    निर्जन अपारदर्शी काँच से पहाड़ों
    के बंकरों में
    गज़भर काठ की पाटियों पर... प्राकृतिक तत्वों कको जीवंत करता उत्तम वर्णन।

    आपके द्वारा शब्दचित्रित कुछ दृश्यों के प्रति श्रद्धापूर्वक नतमस्तक हूँ।
    .
    एकांत,मौन में
    जमी बर्फ की पहाड़ियों के
    भीतर बहती जलधाराओं-सी
    बहती हैं भावनाएँ
    .
    श्वेत पहाड़ों की
    रंगहीन शाखों से
    झरती हैं बचपन से जवानी तक
    की इंद्रधनुषी स्मृतियाँ
    .
    बुखारी"-सी गरमाहट लिये...,
    गुनगुनी धूप के साथ
    सरकती चारपाई,
    मूँगफली,छीमियों के लिए
    साथियों से
    छीना-झपटी कुश्ती, लड़ाई,
    .
    साँझ ढले
    गहन अंधकार में
    बर्फ के अनंत समुन्द्र में
    हिचकोले खाती नाव पर सवार
    घर वापसी की आस में
    दिन-गिनते,
    कभी-कभी बर्फीले सैलाब में
    सदा के लिए विलीन हो जाते हैं
    कभी लौट कर नहीं आते हैं
    .
    आपके लेखन की इस श्रेष्ठता को निःशब्द हो, सादर प्रणाम करता हूँ।

    पढ़कर ऐसा लगा जैसे आपने सैन्य जीवन को करीब से देखा है🙏🏻🤔🙏🏻
    आरंभ में तो इस काव्य में मुझे अपनी लिखी हुई एक कविता (जिसे संभवतः आपने भी पढ़ा होगा), https://hindikavyasankalan.blogspot.com/search?q=%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82+%E0%A4%AA%E0%A4%B0+%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%80&m=1 के भाव नज़र आये, मगर थोड़ा आगे बढ़ने पर आपकी इस रचना के समक्ष मेरी पंक्तियाँ अस्तित्वहीन रहीं।
    भविष्य में इस प्रकार से और भी शानदार लेखन के लिए सादर शुभेच्छाएँ💐💐💐

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    1. ओह...मेरी रचना से भी ज्यादा सुंदर विवेचना पूर्ण और विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया आपने लिख दी है अमित जी।
      हर पंक्ति का सूक्ष्म विश्लेषण किया आपने इतना सारा समय दिया रचना कृतार्थ हुई मेरी।
      आपकी सराहना पर कुछ लिख पायें ऐसे शब्द नहीं हैं मेरे पास।
      आपको सादर प्रणाम बहुत शुक्रिया।
      ऐसी लंबी रचना पाठक कम ही पढ़ते है आपने मन से पढ़ा और लिखा भी उसपर।
      जी सैनिक जीवन के प्रति गहरी श्रद्धा बचपन से रही है...बहुत सम्मान और आदर और स्नेह है मन में उनके लिए।

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  7. सियाचिन के बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों से लेकर बर्फ के अनंत समुन्द्र में हिचकोले खाती नाव तक वीर सैनिकों के जीवन का बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक शब्दचित्रण...
    वाह श्वेता जी !जहाँ न जाये रवि वहाँ जाये कवि
    पंक्ति को चरितार्थ करती आपकी लेखनी को शत-शत नमन🙏🙏🙏🙏

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    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए अति आभारी हूँ सुधा जी ...बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  8. सैल्यूट श्वेता जबरदस्त !!
    कोई कितनी गहराई तक उतर कर कितने मोती लेकर आता है, वो आपकी ये रचना बता रही हैं,
    ऐसे लगा जैसे कोई शोध किया हो आपने कोई बिना देखे कैसे यूं उकेरता है एक एक दृश्य ।
    नमन ।
    एक अपूर्व असाधारण रचना जिसके काव्य और भाव दोनों पक्ष अभिनव है ।

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    1. जी प्रणाम दी,
      आपकी ओजपूर्ण, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया रचना का मान बढ़ा गयी बहुत बहुत आभारी हूँ दी आपका स्नेहाशीष मिलता रहे।
      बेहद शुक्रिया... सादर।

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  9. वीर सैनिक ...
    मेरा सेलूट है ऐसे सभी वीरों को जो अपनी परवा नहीं कर के देश समाज की खातिर जीवन दांव पे लगते रहते हैं ...
    बहुत गहरा और मन को छूने वाला लिखा है आपने ...

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    1. जी आभारी हूँ सर...बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  10. https://bulletinofblog.blogspot.com/2019/12/2019_17.html

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    1. आभारी हूँ रश्मि जी, विशेष प्रस्तुति में अपनी रचना पढ़ना आहृलादित कर गया।
      सादर शुक्रिया।

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  11. Replies
    1. जी प्रणाम सर। सादर।

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  12. मर्मस्पर्शी कविता श्वेता जी. बर्फ़ की पहाड़ियों के भीतर बहती भावनाओं की जलधाराओं को आपने सच में महसूस किया है, और हमें भी कराया है. दिन-रात निस्वार्थ भावना से देश की पहरेदारी करने वाले इन सैनिकों के हम आजन्म ऋणी रहेंगे. पढना सार्थक हुआ.

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  13. प्रभावशाली लेखन, उत्कृष्ट सृजन - - शुभकामनाओं सह।

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  14. प्रिय श्वेता जी ,
    अत्यंत मार्मिक रचना। बर्फ पर सरकती सैनिकों की जिंदगी अपने आसपास के निर्जनता को स्वीकार कर उसके अनुरूप ही ढल जाती है। तभी जनमानस का महान समुद्र खुशियों से लहराता है।बहुत सुन्दर। लेखनी सदैव चलते रहने के लिए शुभकामनाएं।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...